SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाजवादी अर्थ - व्यवस्था और महावीर व्यक्ति एवं समाज के पारस्परिक सम्वन्धों की आधुनिक समाजवादी अर्थ व्यवस्था के संदर्भ में मीमांसा करें तो स्पष्ट होगा कि व्यक्ति के स्वार्थ से समाज के हित को ऊपर स्थान दिया गया है । व्यक्ति समाज के लिये त्याग करे यह समाजवादी की प्रेरणा है और व्यक्ति जितना अधिक त्याग करता है या कि करने के लिये प्रेरित किया जाता है, उतनी ही समाजवादी अर्थ व्यवस्था अधिकाधिक सुदृढ़ वनती है । व्यक्ति और समाज की गति समाजवादी व्यवस्था में परस्पर सहयोगात्मक होनी चाहिये न कि संघर्ष मूलक । जहां व्यक्ति और समाज के बीच संघर्ष उठता है, वहां सामाजिक हितों को प्रमुखता दी जायगी । समाजवादी व्यवस्था में व्यक्ति समाज का पूरक होगा, न कि अधिनायक । सबकी इच्छा का शासन एक की इच्छा का शासन नहीं होता । १०१ जो मार्स ने बाद में कहा, उसे महावीर ने बहुत पहले देखा : याधुनिक समाजवादी अर्थ व्यवस्था के मूल में झांकें तो ये तत्व दृष्टिगत होंगे कि मनुष्य सामाजिक दृष्टि से छोटा वड़ा नहीं, समान होता है तथा उसकी प्रगति में अर्थ का नहीं बल्कि गुरण का वर्चस्व होना चाहिये । ग्रार्थिक क्षेत्र में विपमता की जड़ कटनी चाहिये तथा अवसरों, साधना यादि में समानता आनी चाहिये । सबसे मुख्य बात यह है मनुष्य के सिर पर नहीं पैरों में होना चाहिये । मार्क्स के समाजवादी दर्शन की व्याख्या का अन्तः मर्म यही था कि जैसे एक परिवार में अर्जन करने वाला युवक अपने से भी अधिक सुविधाएं, अर्जन न करने वाले ग्रपने वृद्ध माता-पिता और अपने बच्चों को देना चाहता है और फिर भी उसमें खुशी मानता है, उसी तरह का व्यवहार सारे समाज में प्रसारित हो जाना चाहिये । स्नेह के ऐसे ही सूत्र में सारे समाज को कोई बांध सकता है तो उनका विचार था कि वह समानता का तत्त्व ही हो सकता है । महावीर और मार्क्स को जब दर्शन की स्थिति से देखते हैं तो समझ में आता है कि जो मार्क्स ने बहुत बाद में कहा, उसे महावीर ने उनसे भी दो हजार वर्ष पहले देखा । यह उनकी विलक्षरण दूरदृष्टि का परिचायक है । एक प्रकार से मार्क्स ने तो उस समय की परिस्थितियों का विश्लेषण करके व्यक्तिंवादी व्यवस्था से समाज को मुक्त कराने के लिये अपने दर्शन को प्रस्तुत किया तो महावीर ने ग्राज से ढाई हजार वर्ष पूर्व कठिन व्यक्तिवादी व्यवस्था में अपने प्रत्येक सिद्धांत में समाजवादी व्यवस्था के विचारों का बीजांकुरण किया । जब विभिन्न दार्शनिकों के विचारों में स्पष्ट व्यक्तिवाद की ही छाप थी तब महावीर अपने मौलिक सिद्धांतों में व्यक्ति को इस रूप में प्रभावित किया कि वह विचारों के क्षेत्र में दूसरों के विचारों का समादर करे श्रीर अपने कार्य क्षेत्र को इतना सीमित रखे ह कहीं भी अन्य को क्लेश न पहुंचावे । परिग्रह की मर्यादा का भी सबसे पहले उन्होंने ही उपदेश दिया जिसका प्रयोजन व्यक्ति-संयम से लेकर समाज में सम-वितरण था । सामाजिक By मड़ने
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy