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________________ चक्ररत्न का प्रभाव ही ऐसा होता है कि जिसके पास भी वह होता है-विजय उसकी निश्चय होती ही है। -क्योकि कोई भी विपक्षी उसका सामना नहीं कर सकता। -~-क्योकि चक्ररल बल, वीर्य शौर्य का द्योतक होता है । ---क्योकि चक्ररत्न पुण्य से प्राप्त उपलब्धि होती है। -क्योकि दिग्विजयिता के यहाँ ही चक्ररत्न होता है। ----क्योकि चक्ररल द्वारा जिस भी शत्रु पर प्रहार किया गया कि वह शत्र नष्ट हो जाता है। पूर्व दिशा मे गगा का पूर्ण प्रदेश भरत ने अपने प्राधीन किया आधीनस्थ राजाओ महाराजायो ने रत्न, मोती, प्रादि उपहार स्वरूप भरत को दिये । किसी किसी महाराजा ने अपनी कन्याये भी भेट की। आज भरत सम्राट ने अपने सेनापति को दक्षिण की ओर चलने का आदेश दिया। सेनापति ने सभी सेना को-जो विजय प्राप्त करने के पश्चात विश्राम कर रही थी-रण-सकेत से आहवान किया और दक्षिण की ओर चलने का पथ, नियम, आदि को समझाया। विगुल फिर बज उठा । सेना फिर सज उठी। जय भरत का विशनाद फिर गूज उठा। विशाल नदियो, पर्वतो, गुफाओ को पार करती हुई सेना दक्षिण की ओर बढ़ रही थी । दक्षिण के सभी राजा महाराजा चौक उठे थे। प्रत्येक अपने अपने विचारो मे खोया हुआ था। "हमे तो भरत महाराजा की शरण ले ही लेनी चाहिये।" "नही | नहीं । हम ऐसा नहीं करेंगे। "हो क्यो करे हम भी ऐसा ? आने दो रणस्थल मे, सारा निर्णय हो जायगा। "सत्य । अटल सत्य । कायरतापूर्वक प्राधीन हो जाना तो राज्यकुल के विपरीत है।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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