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________________ ६ जब रागद्वेष मोह का व्यामोह नष्ट हुआ इन्द्रिय सयम और प्राकालानो जजीर को थामे हुये आज महा-मुनिराज अपना छ माह का तपोयोग समाप्त कर चुके थे। छ माह समान भी हो गये इसका उन्हे भान भी नहीं रहा था। मन-स्थिति ही ऐमी हो गई थी कि छ माह समाप्त होते ही नेत्र खुल गये। निरन्तराय छ माह का तपोयोग समाप्त होने पर सभी को प्रसन्नता हुई। ऐसे समय में जब कि पुण्य का उदय होता है तो स्वर्ग में देव भी अपनी तूती वजाने मे पीछे नहीं रहते। वे भी पुप्प वर्षा करने लगे। दुंदुभि वजाने लगे और जय-जयकार करने लगे। पर इन सबसे आदिनाथ मुनिगज को क्या लेना देना । उनकी आत्मा तो छ माह के तपोयोग मे मझ चुकी थी। निर्मल आत्मा मे निर्मल विचार समा चुके थे। तृष्णा, लालसा, वासना सब श्रादिनाथ के विचारो मे से भाग चुकी थी। कोई बाजा वजाये या पुष्प वरसाये, कोई जय बोले या कीर्तन गाये-उन्हे क्या ? वे तो नीरस भी नहीं तो सरस भी नहीं । माहार परम्परा को जन्न देने वाले भगवान आदिनाथ अपने प्रासन से उठे । प्रोह कैसा शरीर हो गया था उनका ? जटाजूट, मिट्टी प्रादि से वैष्ठित और भीमकाय ।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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