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________________ "मैने तुम्हे योग्य समझा है तभी तो यह श्रेष्ठ कार्य किया है। "पूज्यवर । यह राज्य व्यवस्था, यह शासन, यह समाज सगठन यह प्रजा की पालना, क्या मैं .. .. क्या मैं... . . ___ हा हा । यह सब कुछ तुम सरलतापूर्वक कर सकते हो। तुम तो ज्ञानी और कार्यकुशल हो। हर प्रकार की विद्या कौशल्य तुम्हारे पास है । यो अपने आपको दुर्बल ना समझो। ___ भगवान्... . ... .। भरत ने अपना मस्तक पूज्य, भगवान आदि नाय के चरणो मे रख दिया। फिर जय जय कार से गगन मण्डल गूंज उठा। फिर भगवान ने बाहुबली की ओर देखा । वाहुवली तो नम्रता से जमीन से धंसासा जा रहा था। पैर के अगूठे से जमीन कुरेदता हुना प्रसन्नता की लहरो मे गोता लगा रहा था। उसकी दृष्टि तो भगवान के चरणो पर लगी हुई थी। तभी भगवान ने कहा"बाहुवली। "जी प्रभो | बाहुबली का हृदय ममता, प्रेम, मोह और नम्रता की मिश्रित धारानो से द्रवित हो उठा । "लो | तुम्हे युवराज पद देकर पोदनपुर का राज्य दिया जाता है। ___"मुझे ? . किन्तु भगवान् मै तो .. मैं तो... "ज्ञात है कि तुम भरत के आज्ञाकारी और स्नेह से पूर्ण भाई हो । और तुम भरत का अटूट अन्यन्य श्रादर भी करते हो । किन्तु मेरा अपना शासकीय कर्तव्य भी तो मुझे करना है । ___"मोह भगवान | बाहुबली ने भगवान आदि नाथ के चरण छू लिए और गद्गद हो उठा। इस समय जो कुछ भी हो रहा था वह आनन्ददायक और और मगल कारक था। एक ओर तो भगवान के वैराग्य का उत्सव मनाया जा रहा था तो दूसरी ओर भरत का सम्राट बनने
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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