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________________ ( ३२ ) द्वितीय रानी सुनन्दा के महल में छम-छमा छम हो रही है। आदिनाथ-मोद-भरे, प्रसन्नता के साथ रानी सुनन्दा सहित नृत्यकियो का मन मोहक नृत्य देख रहे हैं ? सुनन्दा, आदिनाथ के निकट अपने आप में सिकुडि हुई उमंग की तरग में मौज ले रही थी । तभी मरुदेवी ने प्रवेश किया । नृत्य रुक गया । आदिनाथ और सुनन्दा ने पैर हुये और मां मरुदेवी ने आशीर्वाद दिया । कुछ नम्रता से भरे हुये प्रदिनाथ यहाँ से प्रस्थान कर गये । मा मरुदेवी उच्चासन पर विराज गई । एकाएक मरूदेवी की दृष्टि सुनन्दा के चेहरे पर जाकर रुक गई । सुनन्दा का हृदय-तार छनछना उठा । पैटी [] > सुनन्दा 'जी माताजी '' 'क्या, तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो " • 'जी नही तो नही तो ।' "नही । नही ! अवश्य तुम छिपा रही हो । देखो बेटी | इस अवस्था मे कुछ बात छिपाना हानि कारक हो जाती है । क्या तुम्हे कुछ माह 11444 " 'जी | ||...आं.. हाँ ' हा ' आपने ठीक जाना है." 444 . 1 1 ठीक हो जाता है "1' और रानी सुनन्दा अपने आपमे - शरमा गई । alog 'अच्छा यह तो बताओ मेरा तात्पर्य यह है कि कोई ईच्छा " दोहला 'जी हां "मेरा मन • करू, घमण्डियों का ग दूपर '' तुम्हारा मन क्या वह रहा है कोई कामना · · कोई मेरा मन कर रहा है कि में तपस्या करू और प्रशिक्षित को शिक्षा
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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