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________________ ( १९१ ) (१) जीवन का चौथाई भाग विद्याध्ययन में व्यतीत करना चाहिए। (२) जीवन का चौथाई भाग समाप्त हो जाने पर नियम से ग्राहन्थिक परम्परा को निभाने के लिए विवाह करना चाहिये और जीवकोपार्जन का उपाय करना चाहिए। जिसमे धर्म को मुख्य स्थान दे। (३) जव जीवन का प्राधा भाग समाप्त हो जाय तो अपनी योग्य सन्तान को कार्यभार सम्हला कर आप उसकी देखभाल करे, उसे सतपथ दिखाए। (४) जब जीवन का एक चौथाई भाग शेप रह जाए तो नियम से प्रात्म चिन्तन के रास्ते पर लग जाना चाहिए और सन्तोए धारण करके विचारो मे वैशष्ठ पविनता को पनपाना चाहिए। इस प्रकार आयु के अन्त तक प्रात्म चिन्तन करना चाहिए। आयु कितनी है, जीवन का कैसे विभाग किया जाय? यह प्रश्न आप कर सकते है। मत इसके विषय ना उलझा कर अपना जीवन ८० साल का मान लेना चाहिए और उसी के अनुसार परम्परागत कार्य करना चाहिए। वैसे तो जीवन-लीला का कोई निश्चित समय नहीं कि कब समाप्त हो जाय । अत ज्ञानी पुल्प को तो सदैव ही समपय पर चलते रहना चाहिये । प्रारम्भ मे ही जीवन में सन्तोष सरलता, और सादगी सनना चाहिये। पारिगरिक परिपालन के माथ-साथ अपने जीवन के सुधार का भी ध्यान दिने वाला महान् प्रात्मा ही कहलाती है। 'भगवान प्रादिनान ने समार को ज्या दिया हम अन्त मेहर विनार पर तध्य प्रस्तुत करेंगे।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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