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________________ ( १८३ ) . कहा है किसी ने । ज्यो ही भरत ने अपनी तुच्छता प्रकट की, ज्यो ही भरत ने क्षरण भगुरता प्रकट की 'त्यो ही बाहुबली का पाल्य निकल भागा और आत्म ज्योति चमक उठी। तुरन्त कैवल्य ज्ञान प्रकट हो गया । और कुछ समयान्तर पर कर्म की कडियो को काटकर अपने पिता से भी पहले मोक्षपद प्राप्त कर लिया। भरत जी पर इस सबका एक चमत्कारिक प्रभाव पडा । अब वह समार की, वैभव की, वास्तविकता समझ चुके थे, जान चुके थे । यद्यपि सासारिक वैभव की उनके पास कुछ भी न्यूनता नहीं थी-पर वह सब उन्हे काँटे के सदृश्य लग रही थी। 'जल से भिन्न कमल' की भाति भरत जी उस वैभव मे रहने लगे। मदेव सावधान, यात्म ज्ञान को उचत रहने लगे। एक दिन . एक दिन एक अविश्वासी देव उनकी परीक्षा को प्राया और कहने लगा कि मैं इस पर विश्वास नही करता कि आप इतने बडे वैभव के स्वामी होते हुए भी इसने विरक्त है । यह तो असम्भव है । मैं आपकी इस प्रशसा को निराधार करना चाहता हूँ।' भरत जी मुस्करा उठे, वोले'मुझे प्रशसा की भूख नही है मित्र पर यदि तुम विश्वास लेना चाहते हो तो यह जरूर दिलाया जाएगा। "पर कव | ?? 'दिशाम वाली बात जरा ठहर कर समझायेगे । इसके पहले क्या आप मेरी एक प्राज्ञा का पालन करेगे।" 'अवश्य । अवश्य करूंगा । कहिए क्या नाज्ञा है आपकी ?' 'लीजिए। यह तेल से भरा कटोरा है। इसे अपने दोनो हाथो पर लीजिए और मेरे सभी कमरो, को देख आइए वैभव को निरत पाइए रानियो से मिल आइए" .... । लेकिन एक बात ध्यान में रहे।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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