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________________ ( १४० ) (२४) जिनरप प्राप्ती रिया-दीक्षा के उपरान्त शान्त भाव हो, निप्परिगृही हो, पुरपो का जिन रूप (दिगम्वरत्व) धारण करे। (२५) मौनाध्ययनवृतित्व-मन वचन काम की शुद्धता के लिए मौन पूर्वक रहे । ममस्त गालो का अध्ययन स्निी विशेष ज्ञानी के समीप रहकर करे। इस तरह महाराज भरत ने गृहस्य की सफलता का परिज्ञान भी अपनी जनता को कगया। पश्चात् समस्त राजाओं के मध्य वैठे हुए महाराज भरत ने राजनीति का भी उपदेश दिया जिससे राजा अपनी प्रजा की रक्षा कर सके । यथा - नागरिक समाज दो प्रकार का होता है। एक तो यह जो रक्षा करता है और दूसरा वह जिसकी रक्षा की जाती है। रक्षा करने वाला भासक होता है । और रक्षा करवाने वाली शासित जनता होती है। शासक में निम्नलिखित गुण होना नावश्यक है (१) धैर्यता (२) भमा शीलता (३) कर्मठता (४) पक्षरहित न्याय प्रियता (५) कत्तव्य परायणता (६) सत्यता (७) निलेभिता, (८) उत्साह, साहस, एव दूरदर्शिता । (९) विवेकपूर्वक विचार शीलता । (१०) वासना और विलास से निर्लिप्तता/(११) सदैव सतर्कता। उपरोक्त ग्यारह गुण एक योग्य शासक मे होना चाहिए । जिसकी राजा (शासक) मे उपरोक्त गुणो मे से न्यूनता है तो वह टिक नहीं सकता। उसके प्रति प्रजा (जनता) प्रनेक आन्दोलन सत्याग्रह, विग्रह, आदि कार्य पार बैठते है और वह प्रत्येक की दृष्टि से गिर जाता है।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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