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________________ ( ११६ ) "कोई बात नहीं?" बाहुबलीजी ने कहा । मन्नी को सम्पोषित करते हुए कहने लगे, " नेनापति को प्रस्तुत करो ?" सेनापति कुछ ही क्षणो के पश्चात् स्वयं श्रा गया ? वह भी भरत की सेना के जाने की बात प्रकट करने लगा और भाज्ञा की प्रतीक्षा करता हुत्रा खड़ा हो गया । बाहुवली ने दिया - ' नेता को तैयार होने के लिए कह दो। वह प्रत्येक क्षरण के लिए सजग रहे और हमारे प्रदेश की प्रतीक्षा करें । ने समझता हू कि वह (भरत) आक्रमण करने से पूर्व दूत को पुन भेजेंगे " इस प्रकार सेनापति को आदेश दे हो रहे थे कि भरत के दूत ने प्रवेश क्रिया और कुछ कहने के लिए श्राज्ञा चाही । इत को प्रत्यक्ष देखकर बाहुबली नुम्करा उठे - बोले " वा आदेश है आपके महाराज का ?" "महाराज | वे पुन आपको अवसर दे रहे है कि तोच विचार कर रोने । उनका आदेश है कि रा मे झाप जीत तो सकेंगे नहीं फिर वो बात प्राचे बटाई जाये । छाप क्यो नही महाराज भरत से मिल लेते ?" ― 1 } "दूत महोदय । बाहुबली गरज उठे ज्यादा दढ व कर बाते सुनने का मैं प्रादि नही हूँ हमे जो सोचना था- सोच लिया पर भरत जी से जाकर कह दो कि कही ऐसा न हो कि उनका गर्व मिट्टी मे मिल जाय । श्राज तक की विजय, हार मे बदल जाय । ऐना मालूम पडता है कि उसकी नस नस मे अभिमान का जहर फैल गया है |... • जाओ । ऐमी कायरता की बाते सुनना पसन्द नही करते । उनने कहदो । कि weat भान मान को बचाकर वापिस लोट जाये ।" २। हूत अपना सा मुह लेकर, पैर पीटता हुआ चला गया। दोनो
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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