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________________ ( १०८ ) चरणो मे आकर झुक गया । युद्ध वन्द होने की भेरी और विगुल बज उठा । सेना जहाँ की तहाँ शान्त खड़ी रह गयी | और आपस मे गले मिलने लगे । राजाओ ने महाराज भरत को पूजा को । अपनी कन्याऐ भेट की । “जय भरत 111"...की नाद अब अनेक कण्ठो से गुंजित हो उठी । गगन मण्डल भी काप उठा । + यह उत्तराखण्ड का प्रवेश था । सेना यहां पर विजय प्राप्त करके आगे बढती जा रही थी। और विजय प्राप्त करती जा रही थी। कुछ ही काल मे भरत ने उत्तरा खण्ड पर भी विजय प्राप्त कर ली । अब चारो दिशाओ के छह खण्ड पर भरत का साम्राज्य था । उत्तर शिखर पर विशाल हिमवन पर्वत पास ही था । उसकी छटा देखने सेना भी आगे वढी । कैलाश पर्वत भी यही है । प्रत ज्यो हो कैलाश पर्वत निकट आया कि मानस्यम्भ दिखाई दिया । ध्वजाये फहराती हुई दिखाई देने लगी। दुन्दुभि वजने की ध्वनि सुनायी देने लगी । "क्यो " क्योकि भगवान आदिनाथ अपने समवशरण मे विराजे हुए है। विशाल व रमणीक कैलाश पर्वत पर विराजे हुए भगवान श्रादिनाथ तप मे लीन ये 1 सभी ने भगवान श्रादिनाथ के दर्शन किये पूजा स्तुति की । कैलाश पर्वत पर कृत्रिम विशाल जिन स्तम्भ के दर्शन करने की भी उत्कण्ठा हुई । भरत महाराज ने विचारा कि में ही छ सष्टो का विजेता है । अत मेरे ही हस्ताक्षर इन स्तम्भ पर होंगे ऐसा विचार करता हुआ भरत स्तम्भ के पान पहुंचा। पर ज्यो ही लम्भ को देखा तो भरत नवाक रह गया । यहाँ तो इतने ताक्षर 4 की श्रीर
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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