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________________ ( १०३ ) है कि जैसी आपकी शान है उसे सम्भाल कर वापिस चले जाये ?" ____ "चुप रहो । हम और विशेष सुनने के प्रादी नहीं है ।" सेना पति गरज उठा। ___"आपकी इच्छा ।" कहकर दूत लौटने लगा। तभी सेनाति ने पुन पुकारा... "सुनो।" "कहिये ।" "तुम्हारे महाराज को कहना कि सद्बुद्धि धारण करे । और आकर भरत महाराज की आधीनता स्वीकार कर ले । क्यो हिंसक प्रवृति को बढावा दिया जाये ।" और युद्ध होने पर भी अन्त मे यही होगा कि तुम्हारे महाराज को झुकना ही पडेगा।" यह सब कुछ सुनकर दूत तिलमिला उठा । पर कर कुछ नहीं सका। अपने आप में फुकारता हुआ लौट चला । भरत महाराज ने प्रत्युत्तर आने तक के लिये सेना को वही रोक दिया । कुछ समय पश्चात एक विशाल सेना आती हुई दिखाई दी। गगन मण्डल धूल से धूसर हो गया । घोडो की टाप भयकरता लिये हुए सुनाई देने लगी। विना विचारे इस प्रदेश के राजा ने रणभेरी वजवा दी और युद्ध प्रारम्भ करवा दिया । धनुपो को झकार तरकसो की कुंकार भयकरता लिये हुये कानो को फाडे जा रही थी । भरत की सेना भी टूट पड़ी | अव क्या था युद्ध ने भयकरता अपना ली। भरत के प्रतिद्वन्दी पछाड खाने लगे । उनकी सेना कुचली जाने लगी । अपनी सेना को क्षीण होती देख राजा घबरा गया और अव सुमति जागने लगी । विचारने लगा___ "अवश्य ही यह कोई महान विजेता है । महान वीर भी है । तभी तो विजया पर्वत को पार कर यहाँ पाया है। इससे और ज्यादा भिडना हानिकारक ही होगा 1 - ऐसा विचार कर वह भरत के
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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