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________________ ( १०० ) प्राप्त हुन । रात्रि व्यतीत होते-होते वापिस सेनापति अपनी सेना सहि भरत महाराज के पास या पहुंचे । उस वक्त भरत महाराज शय कर रहे थे। सेनापति ने भी सेना को विश्राम करने का आदे दिया | अन्धकार की काली कलूटी छाती को चीर कर प्राची से प्रभ की किरणे प्रकट हुई । अरण्य के रंग बिरसे विहग गण चहचह उठे । वातावरण में महक - महक उठी । प्रभाती का विगुल बज और सारी सेना सावधान हो एक-एक कतार मे खडी हो गई । महाराज भरत का जयनाद के साथ अभिवादन गाया गया । मीठी मधुर मुस्कान को बिखरते हुए भरत महाराज ने अप शयन मण्डप से बाहर पदार्पण किया । जय भरत ' जय भरत 11 111 जय जय कारा गूज उठा । प्रतिध्वनि से विजयार्ध पर्वत भी गूज उठा। वन मे कोमल हृदय वाले पशु-पक्षी दौडते नजर आने लगे । जय भरत ऊँ मच पर भरत महाराज विराजमान हुए । सेनापति ने विजयार्ध पर्वत का परिचय प्रस्तुत किया । द्वार को तोड़ देने की चर्चा की। विधम दुर्गम राहो का भी विवरण दिया । भरत महाराज ने सब कुछ सुना । तुरन्त ही चल देने का श्रादेश दिया गया । सेनापति ने रणभेरी बजवा दी । प्रस्थान सूचक विगुल बजवाया गया। जिसे सुनकर सेना सतर्क हो श्रागे बटने लगी सेना ने विजयार्ध पर्वत को उस गुफा के द्वार पर जाकर सासे ली । भरत महाराज ने गुफा के द्वार का निरीक्षण किया। उन्होने जान लिया कि गुफा सत्यत दुर्गम और भयकर है। भरत महाराज गुफा के दर प्रविष्ट हुए तो भयंकर जयनाद गूज उठी । चक्ररत्त श्रागे- वटता चला । भरत महाराज के पीछे सेनापति और सेना
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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