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________________ ( ६६ ) तब मुझे क्या करना होगा? आपके पास तो ऐसा चमत्कारिक उपाय है जिससे आपको सहज सफलता मिल सकेगी। कौन सा ? भूल गए ! ब्रजी यह चक्ररत्न । ओह ! हा । मैं यह तो भूल ही गया था। तो आइए चक्ररत्न की पूजा करके आगे बढिये और द्वार खोल दीजिये। सेनापति ने भाव पूर्वक चक्ररत्न की पूजा की । और गुफा के द्वार पर जा खडा हुमा । काफी ताकत लगाई पर द्वार टस से मस भी न हुआ। सेनापति पसीनो से चूर चूर होकर नहा रहा था। दिल कॉप उठा था धडकन तेज हो गई थी। पैर डगमगाने लगे थे। ऐसी उत्साह भरी पराजय देखकर देव हँस उठा । बोला... 'यदि न खुले तो तोड दीजिये। ___ तब पुन चकरल को नमस्कार, करके अपने हाथी को द्वार के पास ले गया । हाथी ने भरपूर जोर लगाया । वह बन का विशाल द्वार कुछ चरमराया । और जोर लगाया गया और जोर लगाया गया .. तभी भयकर मेघ गरजने को सी ध्वनि हुई। सेना चौक उठी। हाथी चिंघाड उठे । घोडे हिनहिना उठे। और सेनापति अपने हाथी सहित एकदम पीछे हटा । गुफा का द्वार टूट चुका था। अन्दर से भयकर गर्म हवा बाहर . निकल रही थी। देव बोला____ 'चलिये । द्वार टूट गया। अब इसकी गरम हवा निकलने दीजिये । इसमे प्रवेश कर उद्घाटन महाराज भरत करेगे। आगे वढिये अन्य स्थान दिखलाया जाये । सेनापति आगे बढ़े। वढते ही गए । विजया पर्वत का चप्पा चप्पा देख लिया गया। वीहड और भयकर धानियो रो परिकार
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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