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________________ १४] , मासबोध जैन मम । चढ़कर परिवार महित आता है और जयजय गन्द्र करना आ नगरकी प्रदक्षिणा देता है। इन्द्राणी प्रतिगृहमें जाकर भगवानकी माताको मायामे मुला देती है और फिर नहीं वैया की मायामयी बालक बकर भगवानको बाहर ले आती। जल इन्द्र भगवानका रूप देवता हुआ तृप्त नहीं होता है. नर हजार आंखे बनाता है पहिला सौधर्म इन्द्र भगवानको प्रणाम कर गोदने लेना है। दूसरा गान इन्द्र छत्र लगाता है। तीसरे चौथ स्वगके इन्द्र चमर ढोरते है और बाकी इन्द्र जय जय शब्द उच्चारण करते है। ____ इस प्रकार चाग प्रकारके देव परम हर्पित हो. वडे उत्सवसे भगवानको गवत हाथीपर विगजमान कर मरुपर्वत पर ले जाते है और वहांकी पांडक शिलापर रक्खे द्वारा नवमयी सिंहासन पर विराजमान करते है। उम समय अनेक प्रकार के बाजे बजते हैं, इन्द्राणी मंगल गाती है और देवागनाएँ नृत्य करती है। देवगण हाथोहाथ भीरममुद्रसे कलशे भरकर लाते है और सोधर्म और ईशान इन्द्र भगवानका अभिषेक करते हैं। फिर भगवानको वस्त्राभूषण पहना कर आनंद-उत्सवसे लौटते है। इन्द्र भगवानको माताकी गोदमे देता है और उनकी सेवाके लिये कुबेरको छोडकर आप अपने स्थानको चला जाता है। प्रश्नावली। १–भगवान्को जन्मसे ही कौन कौनसे ज्ञान होते हैं और — न्द्रको भगवान्का होना कैसे मालूम होता है ?
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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