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________________ नीमरा माना चाजने राजहिं शची मय मिलि, धवल, मंगल, गावहीं । पुनि करहिं नृत्य सुगंगना पब, इंच कौतुक धावहीं ।। भरि क्षीरमागर जल, जु हार्ट, बाथ सुरगन न्यावी । गोधर्म अरु ईशान इन्द्र सु, कलश ले, प्रभु न्यावहीं ।।९।। बदन-उदर अवगाह, कलशगन जानिये । पंक चार वसु जोजन, मान प्रमानिये ।। महम अठोत्तर कलशा, प्रभुके. मिर टेरें । पुनि शृङ्गारे-प्रमुख, आचार मं करें । करि प्रकट प्रभु महिमा महोच्छव, आनि पुनि मानहिं दयो । घनपनिहि सेवा गखि सुरपति, आप मुग्लोकहि गया । जनमाभिषक महंत महिमा, सुनन मब मुग्व पावहीं । भन रूपचन्द सुदेव जिनवर, जगन मंगल गावहीं ॥१०॥ भावार्थ-जन्मकल्याणक । __ जिम ममय मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान संयुक्त श्री तीर्थकर भगवानका जन्म होता है, उस समय तीनो लोकमें आनन्द होजाता है। इस समय इन्द्रका आसन कंपायमान होता है, जिससे वह जानता है कि भगवानका जन्म हुआ। इसी समय कुबेर एक बड़ा सुन्दर मायामयी ऐरावत हाथी बनाता है, जिसकी शोभा बड़ी ही अद्भुत होती है। इन्द्र उस हाथीपर १-देवागना, २-पांचवा समुद्र, जिमका जल दूधके समान है, ३कलगोंका मुंह एक योजन, पेट चार योजन और ऊँचाई आठ योजन, ४-एक हजार आट, ५-वस्त्राभूषण पहिनाना आदि ६-माताको।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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