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________________ श्रात्मतत्व-विचार अर्थात् सुनने की जिज्ञासा ! मतलब यह है कि, जिनागम को सुनने की उत्कट जिज्ञासा होना सम्यक्त्व का प्रथम लिंग है। जिसे अरिहंतदेव, निम्रन्थ गुरु और सर्वज्ञ-कथित शुद्ध धर्म पर दृढ़ श्रद्धा हो गयी हो, उसे भगवान् के वचन सुनने की उत्कट इच्छा होगी ही। अगर न हो, तो वहाँ सम्यक्त्व ही नहीं होगा | जिस देश के नेता अथवा विद्वान् को आप अच्छा मानते हैं, उसका भाषण सुनने की आप कितनी प्रतीक्षा करते हैं ? चाहे बैठने की जगह न मिले, होहल्ला हो, दो-चार मील चलना पड़े, फिर भी आप भाषण सुनकर संतोष प्राप्त करते हैं। उनके वचन को आप जीवन का पथप्रदर्शक मानते हैं और प्रामाणित मानते हैं। धर्मसाधन में परम अनुराग होना, सम्यक्त्व का दूसरा लिंग है। 'धर्म हुआ तो भी ठीक ! न हुआ तो भी ठीक !!' ऐसी मिश्र भावना को धर्म का अनुराग नहीं कह सकते । श्रीमदयशोविजय जी महाराज कहते हैं कि भूम्यो अटवी उतोरे, जिमि द्विज घेबर चंग। इच्छे जिमि ते धर्म नेरे, तेहिज बीजू लिंगरे प्राणी-|| - कोई ब्राह्मण अटवी उतर कर आया हो, उसे कड़ाके की भूख लग रही हो, तब उत्तम घेवर देखकर उसे खाने की जैसी तीव्र इच्छा होती है, वैसी इच्छा धर्म का आराधन करने के लिए हो, तब समझना चाहिए कि सम्यक्त्व का 'धर्म-साधन में परम अनुराग' नामक दूसरा लिंग प्रकट हुआ ! आज आपका धर्माराधन कैसा है ? इसकी निरन्तर जाँच करते रहना चाहिए। यदि राग बाँधा हो तो फिर परम राग की बात क्या ? कोई नयी फिल्म आयी हो तो उसे देखने की उत्सुकता होती है। कोई क्रिकेट की 'टीम' बाहर से खेलने आयी हो, तो उसकी ऐसी उत्सुकता होती है कि, यदि उसका-टिकट मिलता हो आप उसका टिकट किसी दर पर ले लेते हैं। कोई नाचरंग हो या मुशायरा हो तो सामने की 'सीट' 'रिजर्व' करा लेते हैं और समय पर पहुंच ही जाते हैं। पर, यदि धर्म-साधन की बात हो तो कहते हैं कि, 'समय नहीं है !' यदि धर्म-साधन में अनुराग हो, तो ऐसा वचन
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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