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________________ ४८८ श्रात्मतत्व-विचार (१०) सूक्ष्म संपरा यगुणस्थान सूक्ष्मसपरायगुणस्थान में आत्मा स्थूल कषायों से सर्वथा निवृत्त हो नाता है; पर 'सूक्ष्मसपराय' यानी सूक्ष्म कपायो से युक्त रहता है । यह याद रहे कि, कपायें दसर्वे गुणस्थान तक आत्मा को नहीं छोड़तीं । इन कषायों में लोभ का बल विशेष होता है । उसे मार हटाने के लिए भारी पुरुषार्थं करना पड़ता है। लोभ से आत्मा की कैसी हालत होती है यह एक कथा द्वारा बताते हैं । महर्षि कपिल की कथा कपिल राजपुरोहित का पुत्र था, परन्तु लड़कपन में उसने कुछ पढ़ा नहीं । उसने सारा समय खेलकूद में ही बिताया । जब उसका पिता मरा तो पुरोहित का पद दूसरे ब्राह्मण को दे दिया गया । यह नया पुरोहित एक बार उसके घर के सामने से गुजरा। वह बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए था, सर पर मखमल का छत्र था, दोनों तरफ श्वेत वॅवर झले जा रहे थे और एक उत्तम घोडे पर सवार था । कपिल की माता यत्रा को यह देखकर दिल में मार्मिक वेदना हुई । वह मोचने लगी- " अगर मेरा पुत्र पढा लिखा होता तो यह वैभव उमे मिलता ।" इस विचार से वह इतने भावावेश में आ गयी कि, फूट-फूट कर रोने लगी । इतने में कपिल भटकता हुआ घर आया और माता को रोते देखकर कारण पूछने लगा - "हे माता ! तू क्यों रोती है ? तेरा सर दुःखता है ? पेट में दर्द है ? कहे तो वैद्य को बुला लाऊँ ।” माता ने दीर्घ निश्वास छोड़े और कपाल कूट कर कहा - " मेरा सर या पेट नहीं दुखता रहा है, पर तेरी यह अपढ़ हालत खलती है । अगर तू पढ़ लिखकर पंडित हो गया होता तो अपने पिता का स्थान प्राप्त करता और हमारी शान कायम रहती । आज हमारे घर के पास से नया पुरो
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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