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________________ गुणस्थान ४८६ हित निकला था, उसका ठाठ देखा होता तो तुझे मालूम होता कि पाडित्य को कैसा मान मिलता है !" माता के ये शब्द कपिल के दिल को कुरेदने लगे। उसने उसी दिन 'विद्याभ्यास करने का दृढ़ निश्चय किया और चलते-चलते श्रावस्ती नगर जा पहुंचा। श्रावस्ती के इन्द्रदत्त उपाध्याय देश-विदेश में प्रसिद्ध थे। उनके यहाँ हजारो विद्यार्थी पढने आते थे। उनमे जो धनवान थे, वे शान से रहते -थे, शेष मधुकरी से अपना निर्वाह कर लेते थे। पहले मधुकरी करके विद्याध्ययन करने में हीनता नहीं समझी जाती थी। कपिल इन्द्रदत्त उपाध्याय की पाठशाला में प्रविष्ट हो गया। कपिल ने मधुकरी करके कुछ दिनो अपना काम चलाया। पर, उसमें समय ज्यादा चला जाता था इसलिए एक और योजना सोची। वह एक श्रीमंत गृहस्थ के पास गया और सारी बात सुनाकर भोजन की सुविधा कर देने की विनती की। उस दयालु श्रीमन्त की पड़ोस में मनोरमा नाम की एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। उसके यहाँ भोजन की व्यवस्था कर दी गयो। उस श्रीमन्त के यहाँ से मनोरमा के घर दो जन का सीधा रोज पहुंच जाता था। मनोरमा खाना बनाती और कपिल वहाँ आकर जीम जाता। इस " सुविधा से कपिल को विद्याभ्यास मे बड़ी सहायता मिली; पर दूसरी ओर एक अनर्थ पैदा हो गया। मनोरमा बाल-विधवा थी। उसने ससार का लाभ लिया नहीं था । उसका मन कपिल की ओर आकृष्ट हुआ और उसने धीरे-धीरे ऐसा जाल फैलाया कि, कपिल उसमें पूरी तरह फंस गया । एक तो जवानी और फिर एकान्त ! मनुष्य का पतन कैसे न करे !! ___ कालक्रम से मनोरमा गर्भवती हुई और पूरे दिन जाने लगे तब प्रसूति के खर्च की फिक्र होने लगी। आनेवाले तीसरे जीव के पालन की भी चिन्ता होने लगी। मनोरमा ने इसका मार्ग बताया कि, इस गाँव का राजा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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