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________________ गुणस्थान ४५७ वह कमी कार्यसिद्धि नहीं कर सकता। आप उठे और काम मे लगें हमें आपसे यही कहना है। . यदि कोई कहे कि, मैं तो रोज उठता हूँ और काम मे लगता हूँ, तो उसने 'उठने से मेरा तात्पर्य नहीं समझा । यहाँ उठने से हमारा तात्पर्य आध्यात्मिक उत्थान से है । जब हम आपका जीवन-व्यवहार देखते है तो हमें लगता है कि, आप सो रहे हैं और खुर्राटे ले रहे हैं। जागृति का एक भी लक्षण मुझे आपमे दिखायी नहीं देता। जब रोग, बुढापा और मौत आ जायेगी तब क्या होगा, इसका कोई विचार नहीं किया जाता। गुणस्थानों पर चढते हुए मोक्ष तक पहुँचना मानव-भव मे ही शक्य है; इसीलिए उठने और काम में लग जाने की पुकार है। छठे में सर्वविरति, सातवें में प्रमाद-परिहार और आठवें में अपूर्वकरण इतना याद रखकर हम गुणस्थान के विषय में आगे बढ़ें। (8) अनिवृत्तिबादरगुणस्थान आठवें गुणस्थान को प्राप्त करनेवाला संयतात्मा प्रगति करके नौवें गुणस्थान में आता है। यह गुणस्थान अनिवृत्तिबादरगुणस्थान कहलाता है। निवृत्ति, अर्थात् अध्यवसायो की भिन्नता यहाँ नहीं होती, इसलिए 'अनिवृत्ति' विशेषण लगाया है। इस गुणस्थान में समकाल पर आये हुए सब जीवों का अध्यवसाय परस्पर समान होता है। दूसरे समय भी सर्व जीवों का अध्यवसाय परस्पर समान होता है। इस तरह हर समय में अनुक्रम से अनन्त गुण विशुद्ध अध्यवसाय समान ही होते हैं। दसवें गुणस्थान की अपेक्षा यहाँ कपाय बादर होते हैं, इसलिए अनिवृत्ति के बाद 'बादर' विशेषण लगाया है। ___ इस गुणस्थान में उपशमश्रेणि या क्षपकश्रेणि का काम आगे बढ़ता है, इसलिए मोहनीय कर्म की वीस प्रकृतियों का उपशम या भय होता है, और पहले दूसरी सात प्रकृतियों का उपशम या भय हो चुका है; इसलिए यहाँ एक सज्वलन लोभ ही शेष रहता है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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