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________________ गुणस्थान ४५३ मर्वज-भापित और असर्वज्ञ-भापित मे समान श्रद्धावाली हो जाती है, उस जीव को एक नयी जाति का मिश्र परिणाम उत्पन्न होता है। यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि, मिश्र-गुणस्थान में रहने वाला जीव परभव मे भोगने योग्य आयुष्य का बन्ध नहीं करता। इस अवस्था मे वह मरण भी नहीं पाता। वह चौथे सम्यग्दृष्टि गुणस्थान पर चढकर या मिथ्यादृष्टि-गुणस्थान पर आकर मरण पाता है। प्रश्न-"चौदह गुणस्थानो में ऐसे गुणस्थान कौन से है कि, जिन मं नीव मरण नहीं पाता ?' उत्तर-"तीसरा मिश्र-गुणस्थान, बारहवाँ क्षीणमोह गुणस्थान और तेरहवाँ सयोगी-गुणस्थान-ये तीन गुणस्थान ऐसे है कि, जिनमे जीव का मरण नहीं होता, शेष ग्यारह गुणस्थानो में होता है। प्रश्न-"मरण के समय कोई गुणस्थान जीव के साथ जाता है या नहीं " उत्तर- "पहला मिथ्यात्व, दूसरा सास्वादन और चौथा अविरति गुणस्थान मरण के समय जीव के साथ जाते है, शेष गुणस्थान मरते समय जीव के साथ नहीं जाते।" ___ यहाँ यह स्पष्ट कर दूं कि, मिश्र-गुणस्थान की प्राप्ति से पहले जीव ने सम्यक्त्व का या मिथ्यात्व का भाव बरत कर जो आयुष्य बाँधा होगा, उस भाव सहित जीव मरण पाता है और उस भाव के अनुसार सद्गति या दुर्गति पाता है। यह गुणस्थान सादि-सान्त है और इसकी स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। जिसे सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का मिश्र भाव हो, उसके मन की स्थिति डॉवाडोल होनी स्वाभाविक है। (४) अविरत-सम्यग्दृष्टि-गुणस्थान आव्यात्मिक विकास का सच्चा मंडान इस गुणस्थान से होता है, इस
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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