SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५४ श्रात्मतत्व-विचार लिए उसका स्वरूप भलीभाँति समझ लें। इसे संक्षेप में 'सम्यक्त्वगुणस्थान' या 'समकितगुण-ठाणु' भी करते है। 'समकिन गुणठाणे परिणस्या, वली व्रतधर संयम सुख रम्या' । ये पक्तियाँ आपने सुनी होंगी, याद भी होंगी, क्योकि ये श्री वीर विजय जी महाराज-कृत स्नात्र-पूना मे आती हैं और इस स्नात्र का सतत पाठ होता है। कितने ही भाग्यशाली स्नात्र रोज पढाते है और अपना सम्यक्त्व दृढ करते हैं । कुछ लोग वार-पर्व मे स्नात्र पढाकर अहंद्-भक्ति का लाभ लेते हैं। इसके लिए इस शहर मे और दूसरे स्थानो पर कई स्नात्र मंडल स्थापित किये गये हैं। यह प्रवृत्ति अनुमोदनीय है। इस गुणस्थान मे पहले 'अविरत' शब्द क्यो लगाया ? इसे भी स्पष्ट कर दें। इस गुणस्थान पर आनेवाले की अनन्तानुबन्धी कपायें उदय में नहीं होती, प्रत्याख्यानी आदि कपायें उदय में होती है, इसलिए चारित्र अर्थात् विरति नहीं होती। इसीलिए उसके पहले 'अविरति' शब्द लगाया है। पूर्व व्याख्यानों में सम्यक्त्व के सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टियों से काफी कहा गया है, लेकिन यहाँ सम्यक्त्व का प्रसंग विशेष रूप में चल रहा है, इसलिए उसके विषय में कुछ अन्य जानने योग्य बातें कहूँगा। ___ सम्यक्त्व के भेटों की गणना अनेक प्रकार से होती है, उनमे से तीन भेद यहाँ विशेष प्रकार से विचारने योग्य है : १. सम्यकत्व के प्रकारों के विषय में नीचे की दो गाथाएँ प्रचलित है एगविहदुविहतिविहं, चउहा पचविहं दसविहं सम्म । एकविहं तत्तरुई, निस्सग्गुवएसयो भवे दुविहं ॥१॥ खइयं खोवसमियं उवसमिय इय तिहा नेयं । खझ्याइसासणजुग्रं, चउहावेअगजुधेच पंचविहं ॥२॥ एक प्रकार, दो प्रकार, तीन प्रकार, चार प्रकार, पाँच प्रकार, दस प्रकार, इस . प्रकार सम्यक्त्व के अनेक प्रकार कहे हैं। तत्त्व पर मचि होना एक प्रकार का
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy