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________________ आत्मा का अस्तित्व नजर से दिखायी देता है । तुम स्वय ही उनके कार्य हो, उसके जीतेजागते सवृत हो, जो तुम्हारी सौवीं-हजारवीं - लाखवीं पीढ़ी न होती तो तुम होते ही कहाँ से ?" इससे यह निश्चित हुआ कि, जो चीज नजर से न दिखती हो, पर उसका कार्य दिखलायी देता हो, वह अस्तित्व में हैं, ऐसा हम मानते हैं और ऐसा ही मानना चाहिये । इसका कारण क्या है ? प्यास लगती तो अत्र, 'आत्मा का कार्य दिखायी देता है या नहीं ? इसका हम विचार करें । एक आदमी मर जाता है, तब शरीर तो ज्यो-का-त्यो रहता हैवही आकृति, वही नाक, वही कान, वही मुँह, सब ज्यो-का-त्यो ? फिर भी, मर जाने के बाद वह कुछ कर नहीं सकता । मरने से पहले भूख लगती तो वह खाना माँगता था, पानी माँगता था, पर अब वह क्यों कुछ नहीं माँगता ? शायद मॉगे बगैर भी अगर उसके मुँह में अन्न का ग्राम रख दिया जाये तो क्या वह खायेगा ? या पानी डाला जाये तो पीयेगा ? जब जीता था तो कहता था कि 'यह मेरी पत्नी है, यह मेरा पुत्र है, यह मेरी पुत्री है, ये मेरे सगेस्नेही हैं ।' पर, अब वह क्यो नहीं बोलता ? घड़ी भर पहले वह यह कहता था कि, 'अब मेरे कुटुम्ब का क्या होगा मेरी सम्पत्ति का क्या होगा ? जिन पशुओ को मैंने इतने प्रेम से पाला है, उनका क्या होगा ?" और वह निःश्वास छोड़ता था, अफसोस करता था, आँखों से ऑमू चहाता था, वह सब एकाएक बढ क्यों हो गया ? क्या कुटुम्ब के प्रति उसका आकर्षण कम हो गया ? धन सम्पत्ति की ममता कम हो गयी ? या पशुओ के प्रति प्रेम लुप्त हो गया ? अगर ऐसा होता तो बेडा पार हो जाता, पर ऐसा कुछ न होकर उसका सब काम बट हो गया —यह तथ्य है ! ? मरे हुए को कोई गाली दे तो क्या वह बोलेगा ? या लात मारे तो कराहेगा ? पहले कोई सुलगती दियासलाई लगाता तो गर्म हो जाता और उसके साथ लड़ पड़ता, पर अब लकड़ियो की चिता पर वह सारे-का-सारा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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