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________________ आत्मतत्व-विचार जला दिये जाते समय भी गम नहीं होता, न चू-वॉ करता है। इसका कारण क्या है ? कारण यही है कि उसमे जो जाननेवाला था, देखनेवाला था, सुननेवाला था, सूंघनेवाला था, चखनेवाला था, छूनेवाला था, बोलनेवाला था, विचारनेवाला था और इच्छानुसार क्रिया करनेवाला था, वह चला गया। अगर जानना-देखना आदि कार्य गरीर में होते, तो गरीर तो मुर्दे का भी मौजूट है और उससे भी वे सब कार्य होने चाहिए थे। पर, वे कोई होते नहीं हैं। इसलिए, यह निश्चित है कि, वे कार्य गरीर के नहीं, बल्कि आत्मा के थे। तात्पर्य यह कि, चैतन्यपूर्ण जीवन-व्यवहार आत्मा के अस्तित्व का बड़े से बड़ा प्रमाण है। कोई भी समझदार इससे इनकार कैसे कर सकता है ? कीडी-मकोडी वगैरह में चैतन्यमय जीवन-व्यवहार है, अर्थात् उसमें आत्मा है । कागज, पेसिल, छुरी, चाक, आदि में चैतन्यमय व्यवहार नहीं है---अर्थात् उनमें आत्मा नहीं है । गाय, भैंस, हाथी, घोडा, मछली, सॉप, मनुष्य आदि मे चैतन्यमय जीवन-व्यवहार है, अर्थात् उनमे आत्मा है। जैसे धुएँ से अग्नि का अनुमान किया जाता है, वैसे ही चैतन्य से आत्मा का अनुमान किया जा सकता है। शास्त्रकार भगवतो ने 'चैतन्य लक्षणोजीवः' यह सूत्र कहा है । उसका अर्थ यह है कि 'जहाँ चैतन्य दिखायी दे, वहाँ जीव या आत्मा का अस्तित्व है । ___आत्मा के अस्तित्व के अन्तर्गत प्रदेशी राजा का प्रबंध जानने योग्य है। उसे आप एकाग्र चित्त होकर सुनेगे तो आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी आपके मन के सब सशय दूर हो जायेगे। प्रदेशी राजा का प्रवन्ध तेईसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ की परम्परा में केगीकुमार नामक श्रमण हुए। वे मान्त, दान्त, महातपस्वी तथा अवधि और मनःपर्यव
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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