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________________ २१० श्रात्मतत्व-विचार रत्न से हीरा, माणिक वगैरह न समझना, ऐसे रत्न तो उसके पास लाखो की संख्या मे होते है । यहाँ रत्न से नात्पर्य विशिष्ट शक्तिशाली I वस्तुओं से है। वे १४ रत्न इस प्रकार है -१ सेनापति, २ गृहपति, ३ पुरोहित, ४ अश्व, ५ गज, ६ वर्धकि, ७ स्त्री, ८ चक्र, ९ छत्र, १० चर्म, ११ मणि, १२ काकिणी, १३ खड्ग और १४ ढड | 1 चक्रवर्ती का सेनापति इतना कुशल होता है कि महान सेना का समुचित सचालन कर सकता है और चक्रवर्ती की सहायता बिना भी देशो को जीत सकता है । गृहपति रत्न चक्रवर्ती की सेना को इच्छित भोजनसामग्री तथा फल-फूल की व्यवस्था करता है । पुरोहित-रत्न शांतिकर्म करता है और धार्मिक क्रियाएँ कराता है । अम्व रत्न चक्रवर्ती के बैठने के काम आता है । ऐसा अश्व दुनिया में दूसरा नहीं मिल सकता | गज- रत्न उत्तम प्रकार का हाथी होता है, वह भी चक्रवती के बैठने के लिए होता है | वर्धकि-रत्न इमारते, पुल, वगैरह बनाने का काम करता है । स्त्री - रत्न का अर्थ चक्रवती की पटरानी होने योग्य स्त्री । वह भी विशिष्ट शक्ति सम्पन्न होती है । चक्र-रत्न शत्रु की पराजय करनेवाला शस्त्र होता है । छत्र-रत्न सर के ऊपर धारण किया जाता है । चर्म - रत्न यानी चमड़े का I एक विशिष्ट साधन जो कि नदी, सरोवर, वगैरह पार करने के काम आता है । इस चर्म रत्न द्वारा सारी सेना नदी वगैरह पार कर सकती है। मणिरत्नदूर तक प्रकाश करनेवाला एक अद्भुत् रत्न होता है । काणिकीरत्न यानी पत्थर तक को छेद सकनेवाली एक विशेष वस्तु । खड्ग - रत्न उत्तम प्रकार की तलवार होती है और दडरत्न एक ऐसा यत्र होता है जो विषम भूमि को सम कर सकता है और बड़ी ही रफ्तार से जमीन खोद सकना है । इन रत्नों के द्वारा चक्रवर्ती राज्य का विस्तार कर सकता है । नवनिधि में गात करप होते है, उनमें अनेक प्रकार की विद्याओ और वस्तुओं का वर्णन होता है । उनसे चक्रवर्ती अपने राज्य को खूब खुशहाल बना सकता है । नवनिधियो के नाम ये हैं :- १ नैसर्प, २ पाडुक,
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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