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________________ १२२ प्रात्मतत्व-विचार लगे ? जिसका दिल सिर्फ स्वार्थ और लुच्चाई से भरा हो वह दूसरे को अच्छा और मुखी नहीं देख सकता । उस वक्त मत्री ने बातो-बातो में कहा कि 'महाराज' इस जगत् में चमत्कार-जैसी भी चीज है। यह मुन कर नायब-मत्री बोला- "इस जगत मे चमत्कार जैसी कोई चीज है ही नहीं यह तो लोगों को फंसाने के लिए चालवानी है, अगर सचमुच चमत्कार है, तो साबित कीजिये।" यह सुनकर मत्री को भी ताव चढा । उसने कहा--"अगर मै साक्ति करके टिग्वा दूं तो किसकी गर्त लगाता है ?' उसने कहा-"जो जीते वह दूसरे के घर जाये और जिस वस्तु को हाथ लगाटे वह जीतनेवाले की ।" मत्री ने यह शर्त मंजूर कर ली । अब उसे अक्ल देने वाले पर पूरी श्रद्धा हो गयी थी। उमे राजा को अपनी बुद्वि-प्रतिभा दिखलाने का भी होंसला था, इसलिए गजा को साक्षी रख कर उसने कहा-"ये बीज शक्करटेंटी के है । उन्हे रेती पर रखकर उस पर पानी छिड़कॅगा कि, वे फूटेंगी और उसकी शक्करटेंटी आपको खाने को मिलेगी ।" यह सुनकर नायव मत्री व्यंग्य की हसी हँसने लगा। ___मत्री ने बीज रेती पर रखे ओर पानी डाला, और परिणाम की राह देखने लगा, लेकिन काफी देर हो जाने पर भी उन बीजो में कोई फेरफार नहीं हुआ। यह देखकर मत्री हकबका गया । वह समझ न सका कि यह कैसे हुआ ? सब अक्लो के फल जाने के बाद यह बाधा क्यों आयी ? उसने अपनी हार मजूर कर ली, लेकिन गत का अमल होने के लिये पन्द्रह दिन की मोहलत मॉगी। नायव-मत्री को जीत का मद था। वह राजा के सामने अपनी उदारता का भी प्रदर्शन करना चाहता था, इसलिए उसने पन्द्रह दिन थी मोहलत कबूल कर ली। ___मत्री घर वापस न जाकर, मजिल-दर-मजिल अक्ल बेचने वाले दुकानदार के पास पहुँचा और सारा हाल कह सुनाया। दुकानदार ने कहा-"इसमे तुमने एक जगह भूल खायी है। सब बात स्त्री से नहीं कहनी
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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