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________________ आत्मा का खजाना १२३ थी । अगर तुमने उससे बात न की होती, तो मब कुछ ठीक हो गया होता । मुझे लगता है कि, तुम्हारी स्त्री और नायव-मत्री मिले हुए हैं और उन्होंने तुम्हे नीचा दिखाने के लिए उनने यह पट्यन्त्र रचा है । तुम इन बीजों को गौर से देखोगे तो मालम होगा कि ये सिके हुए है।" फिर दुकानदार ने अपने पास से दूसरे बीज निकाल कर फिर प्रयोग कर दिखाया और नये चीज दिये और क्या करना चाहिये, इसके चारे में कुछ सलाह भी दी। इससे मत्री को सन्तोष हुआ और अपने गाँव वापस आया । पर, वह घर न जाकर सीधा राजटरवार मे गया और राजा से यह कह कर कि, अब मै अपनी शर्त पालने के लिये तैयार हूँ | 'आप नायब-मत्री को साथ लेकर घर पधारें', कहकर वह अपने घर चला गया । ___मत्री का घर पुराने दग का था। ऊपर पाटन पर चढने के लिए एक सीढी रखनी पड़ती थी। उसने सीढी के द्वारा पत्नी को ऊपर भेज दिया और नीचे की हर चीज ऊपर चढा दी। फिर, पत्नी को भी ऊपर ही रहने दिया । उसे यूं समझा दिया कि तू ऊपर होगी तो जिस चीज की जरूरत होगी उसे नीचे दे सकेगी। ऐसा कहकर उसने सीढी हटा दी। थोड़ी देर बाद राजा उम नायब मत्री को लेकर मत्री के घर आया । मत्री ने उनका स्वागत किया । अब नायब मत्री चारो तरफ नजर डालकर देखने लगा, पर जिस चीज पर हाथ रखना है वह तो दिखायी ही नहीं दे रही थी। उस वक्त मत्री की पत्नी ने गम छोड कर कहा-"मैं ऊपर बैठी हूँ।" नायव मत्री ने उसके सर पर हाथ रखने के विचार से ऊपर चढने का निर्णय किया और वहाँ पड़ी हुई सीढी उठा कर मेढ़े पर लगायी। उसी वक्त मत्री ने कहा- "बस, अपनी गर्त पूरी हो गयी। आपने इस सीढी को हाथ लगाया है । इसलिए, यह सीढी आप की हो गयी। तभी नायव मत्री को भान हुआ कि, उसने गम्भीर भूल खायी है । पर, अब दूसरा उपाय नहीं था। ___ उस वक्त मत्री ने कहा-"महाराज । यह सब तो हुआ, पर मुझे
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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