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________________ श्रात्मा की संख्या ६१ मे नहीं होती, इसलिए २ जन्य सख्या है, १ से लगाकर उत्कृष्ट तक की संख्या मध्यम है और जिसका ऊपर के उपमानो द्वारा कथन किया गया है उससे १ कम, उत्कृष्ट संख्या है । असख्यात के तीन प्रकार है : परिक्त, युक्त और निजपद-युक्त | इन तीन के फिर तीन-तीन प्रकार हैं : जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । इस प्रकार असख्यात के कुल नौ प्रकार होते है । वे इस प्रकार -- १ - जघन्य परित असख्यात । २ - मध्यम परित्त असंख्यात । ३ - उत्कृष्ट परित असख्यात । ४- जघन्य युक्त असख्यात । ५- मध्यम युक्त अमख्यात । ६ —— उत्कृष्ट युक्त असख्यात । ७ — जघन्य' अस ख्यात असख्यात । ८ - मध्यम असख्यात असंख्यात । ९ उत्कृष्ट असख्यात असख्यात । उत्कृष्ट संख्यात में १ चढा दें, यो जघन्य परित्त जायेगा । इस तरह असख्यात का गणित बड़ा सूक्ष्म है, विवेचन नहीं करेंगे; परन्तु थोड़े में इतना ही कहेंगे कि असख्य बार गुणा करें तब असख्यात असख्यात होता है । असख्यात बन इसलिए उसका असख्यात को इस उत्कृष्ट असंख्यात- असख्यात में एक बढा दे तो अनन्त कहायेगा । शास्त्रकारो ने अनन्त के भी तीन प्रकार माने हैं। परित, युक्त और निजपद युक्त और उनके भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन प्रकार माने है । अर्थात् अनन्त भी नौ प्रकार का होता है । वे इस प्रकार - १ - जघन्य परित्त अनन्त । २- मध्यम परित्त अनन्त ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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