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________________ आत्मतत्व-विचार ३-उत्कृष्ट परित्त अनन्त । ४-जघन्य युक्त अनन्त । ५--मध्यम युक्त अनन्त । ६-उत्कृष्ट युक्त अनन्त । ७-~-जघन्य अनन्तानन्त । ८ मध्यम अनन्तानन्त । ९--स्कृष्ट अनन्तानन्त । उसमें गणना तो मध्यम अनन्तानन्त तक ही जाती है, उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक नहीं जाती इसलिए वह केवल समझने के लिए है। उत्कृष्ट अनन्तानन्त क्यों नहीं है ? इसका एक उदाहरण व्यवहारगणित से देते हैं। किसी आदमी से यह कहे कि १ का दूना करते ही जाओ तो वह कहाँ तक करेगा ? मान लो कि उस आदमी की उम्र अरबो वर्ष की है, तो भी क्या इस प्रक्रिया का अन्त आजायेगा क्या ? उसी तरह १ के दो-टो विभाग करने हो तो भी उसका अन्त नहीं आयेगा। इस प्रकार अनन्त बुद्धिगम्य होते हुए भी अन् अत-अन्तरहित ही रहता है और इसलिए उत्कृष्ट अनन्त सभव नहीं है। अनन्त के विषय में और भी एक बात समझ लेनी है कि, अनन्त में अनन्त बढा दें तो भी अनन्त होता है और अनन्त मे से अनन्त घटा दे तो भी अनन्त रहता है। समुद्र के पानी में पाँच लाख मन नया पानी आवे तो वह बढ़ नहीं जाता और पाँच लाख मन पानी उसमें से ले लिया जाय तो वह घटता नहीं। * 'उकोसयं अणन्ताण नत्थि उत्कृष्ट अननानन्त नहीं है। --श्री अनुयोगद्वार सूत्र
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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