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________________ १० श्रात्मतत्व-विचार ३८ करोड ७४ लाख, २० हजार और ४८९ अंक का आयेगा। ऊपर वक्त और साधन की बात कही उसका भी खुलामा कर दे। एक आदमी खाना-पीना सब छोडकर मात्र अक ही लिखता रहे और एक मिनिट में १० अक लिखे तो इस सख्या को लिखने में लगभग ७४।। वर्ष लगेगे, और अगर एक इच में १० अक लिम्वे, तो उमे लिखने के लिए ६११ मील से ज्यादा लम्त्री पट्टी चाहिए। अब आप हो कहिये कि, इतना समय और इतना साधन कौन ला सकता है ? परन्तु शास्त्रीय गणित इससे भी आगे बढ़ जाता है और उत्कृष्ट संख्या का अनुमान अनवस्थित, गलाका, प्रतिगलाका और महाशलाका के उपमानों द्वारा देता है। यहाँ यह बतला दें कि, व्यवहार-गणित गणना के लिए सख्यात और असख्यात ऐसे दो प्रकार मानता है और असख्यात को ही अनन्त कहता है; पर जैन-शास्त्रकारों ने इससे आगे बढकर वस्तु की गणना के लिए तीन प्रकार बताये हैं--संख्यात, असख्यात और अनन्त ! उसमें सख्यात तीन प्रकार के बतलाये है-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । १ की गणना सख्या ( पृष्ठ २६ की पाट टिप्पणि का शेषाश ) ७२६ तीन अक x६ ६५६१ चार अंक X8 ५६०४६ पाँच प्रक वगैरह १-१ मिनिट में दस तो घटे में ६०० और २४ घटे मे १४४००। इस वर्ष के 380 दिन से गुणा करें तो ५१८ ४००० की सख्या आयेगी। उसे उपयुक्त ३८७४२०४८६ की सख्या में भाग दें तो भजनफल ७४ श्रायेगा और ३६० ४४८६ शेष बचेगा। इसलिए यहाँ लगभग ७४ वर्प कहा है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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