SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय श्रध्याय के परवर्ती थे । इनका जन्म सं० १७४४ और मृत्यु सं० १८३४ है । इनकी अनेक रचनाएँ यती बालचन्द जी के संग्रह में सुरक्षित हैं । उपलब्ध रचनाओं समुद्र बद्ध कवित्त, गौतमीयकाव्य, सिद्धान्त चन्द्रिका वृत्ति, गुण माला प्रकरण, हेमीनाम माला तथा अमरुशतक, भर्तृहरि दातकत्रय, लघुस्तवन. भक्तामर, कल्याण मंदिर, शतश्लोकी सन्निपात कालिका आदि संस्कृत ग्रन्थों की भाषा टीका प्रमुख हैं । इन टीकाओं के अतिरिक्त इनकी एक अन्य रचना 'जिन सुखमूरि मजलस' का भी पता चला है । इसका दूसरा नाम 'द्वावेत' भी है।' इन रचनाओं में आपने अपना परिचय भी दिया है, जिसके अनुसार आपका वंश ओसवाल व गोत्र आचलिया था । आचलिया गोत्र के व्यक्ति बीकानेर के अनेक गाँवों में व भी रहते हैं । इसी आधार पर नाहटा जी का अनुमान है कि रूपचन्द बीकानेर के रहने वाले थे । महोपाध्याय रूपचन्द ने अपनी रचनाओं में गुरु-परम्परा का उल्लेख करते हुए अपने को क्षेम शाखा के शान्तिहर्ष के शिष्य वाचक सुखवर्धन के शिष्य, वाणारस दयासिंह का शिष्य वतलाया है । में ६५ नाहटा जी की इस खोज से स्पष्ट है कि 'नाटक समयसार' के टीकाकार बनारसीदास के परवर्ती और तीसरे रूपचन्द थे । ये संस्कृत, हिन्दी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे, मौलिक ग्रन्थों की रचना के साथ कुछ प्रमुख ग्रन्थों की टीका लिखा था । इस प्रकार रूपचन्द जी, पाण्डे रूपचन्द से ग्रायु में छोटे और महोपाध्याय रूपचन्द के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं । उनके द्वारा रचित उपलब्ध ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है : रचनाएँ : (१) पंच मंगल या 'मंगल गीत प्रबन्ध' - एक छोटी-सी रचना है । यह जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित भी हो चुकी है । (२) परमार्थ दोहा शतक या दोहा परमार्थ - इसमें १०१ दोहा छन्द हैं । इसकी एक हस्तलिखित प्रति लूणकर जी के मन्दिर जयपुर, दूसरी प्रति बड़े मन्दिर जयपुर तथा तीसरी प्रति वधीचन्द मन्दिर के शास्त्र भाण्डार जयपुर में सुरक्षित है । आमेर शास्त्र भाण्डार ( जयपुर ) के गुटका नं० ४० वेष्टन नं० ३७१ में 'दोहा परमार्थ' की एक अन्य प्रति मुझे देखने को मिली । वधीचन्द मन्दिर की प्रति भी मुझे प्राप्त हो गई है । इसके प्रारम्भ में 'दोहा परमार्थ रूपचन्द कृत' लिखा है और अन्त में ' इति रूपचन्द कृति दोहा परमार्थ १. हिन्दी साहित्य (द्वितीय खंड) मं० डा० धीरेन्द्र वर्मा, पृ० ४६६, २. देखिए - राजस्थान के जैन शास्त्र भाण्डारों की ग्रन्थ सूची ( द्वि० भाग ) पु० ७३ और १६० ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy