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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर आश्विन शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में माता त्रिशला की कुक्षि में आ गई ।” जब देवानन्दा की कुक्षि से भगवान् की आत्मा का संहरण हुआ तब उसे स्वप्न आया कि उसके 14 स्वप्न कोई ले गया है । देवानन्दा उठकर बहुत आर्तध्यान करती है, लेकिन अब क्या. ..? ऐसी गर्भ - संहरण की घटना को शास्त्रकारों ने आश्चर्यरूप माना है । - 79 स्थानांग सूत्र में जहां दस आश्चर्यों का वर्णन है वहां इसे भी आश्चर्य माना है।" भगवान् स्वयं जान गये कि मेरा संहरण हो गया है। बस, यही भगवान् महावीर की आत्मा का अपश्चिम सत्ताईसवां भव है । इस अन्तिम भव में महारानी त्रिशला की कुक्षि से जन्म लेकर तीनों लोकों को उद्योतित कर रहे हैं। क्षत्रिय कुण्ड के राजमहलों में पोषित नन्हा राजकुमार अपनी बाल-क्रीड़ओं से सभी को मन्त्रमुग्ध बना रहा था । बालक का भविष्य बचपन में ही परिलक्षित हो जाता है। बालक वर्धमान की बालसुलभ चेष्टाओं को देखकर सभी यही कहते थे कि यह बालक बड़ा होनहार होगा। कुमार वर्धमान की निर्भयता, धीरता, वीरता, यह इंगित कर रही थी कि ये भविष्य में महान पराक्रमशाली शूरवीर बनेंगे । शनैः-शनैः कुमार वर्धमान कुछ कम आठ वर्ष के हो गये। एक दिन महारानी त्रिशला से कहा- मातुश्री, आप की आज्ञा हो तो मैं बाहर उद्यान में बालकों के साथ खेलना चाहता हूं । त्रिशला - अच्छा! जाओ वत्स, जल्दी आना । कुमार वर्धमान चले जाते हैं खेल खेलने । बालकों की टोली एकत्रित होती है। सभी के एकत्रित होने पर वर्धमान ने कहा- मित्रो! अभी आमलकी क्रीड़ा खेलते हैं। सभी ने एक स्वर से कहा- चलो खेलते हैं । आमलकी क्रीड़ा हेतु संभी बालक एक स्थान पर खड़े हो जाते हैं। सभी तय कर लेते हैं कि हमको अमुक वृक्ष पर चढ़ना है। सभी एक साथ यहां से दौड़ना प्रारम्भ करेंगे। जो सबसे पहले इस निर्धारित वृक्ष पर चढकर नीचे उतरेगा, वह विजयी होगा। वह विजयी बालक पराजित बालकों के कन्धे पर चढ़कर पुनः यहां तक आयेगा, जहां से
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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