SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82 अपश्चिम तीर्थकर महावीर और भी कई प्रश्न वृद्ध ब्राह्मणरूपी इन्द्र ने पूछे । कुमार वर्धमान से समाधान श्रवण कर गुरुकुल का पंडित हतप्रभ रह गया । तब इन्द्र ने कहा- ये वर्धमान सामान्य बालक नहीं हैं । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञान के धारक हैं। भविष्य में ये धर्म के चक्रवर्ती तीर्थंकर भगवान् बनेंगे। तब पंडित नतमस्तक हो गया । शक्रेन्द्र वर्धमान को प्रणाम कर लौट गये। पंडितजी ने वर्धमान को राजभवन पहुंचाया, पारिवारिक जनों को सारी बात बताई । सब श्रवण कर गद्-गद हो गये । इन्द्र द्वारा व्याकरण सम्बन्धी पूछे गये प्रश्नों एवं कुमार वर्धमान द्वारा दिये गये उत्तरों का संकलन कर पंडितजी ने 'ऐन्द्र व्याकरण' बनाई 190 कुमार वर्धमान बचपन से किशोर अवस्था की ओर बढ़ने लगे । बचपन बीता, किशोर वय ने अंगड़ाई ली। वे अपनी प्रखर प्रतिभा और अद्भुत चिन्तनशैली से सभी को प्रभावित करने लगे । तरुणाई शरीर के पौर-पौर से झलकने लगी । दिव्य भाल, ओजस्वी मुखमण्डल, राजीव लोचन, भव्याकृति वाले दीर्घ कान, उन्नत नासिका, गुंजा की लालिमा से भी अधिक अरुणाभ ओष्ठ - अधर, श्वेत दन्तपंक्ति, अरुण - कपोल बड़े नयनाभिराम लग रहे थे। देखते ही मन को समाकृष्ट करने वाली भव्याकृति हर्षविभोर करने वाली थी । 1 कुमार वर्धमान के अद्वितीय रूप और लावण्य को दृष्टिगत कर एक दिन सिद्धार्थ ने त्रिशला महारानी से कहा त्रिशले ! कुमार वर्धमान ...... परिपूर्ण यौवन को प्राप्त हो गये त्रिशला - हां राजन! कुमार तो विवाहयोग्य लग रहे हैं। सिद्धार्थ - लेकिन. क्या ? विवाह नहीं करेंगे? त्रिशला - कुमार की अनासक्तता से ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। सिद्धार्थ - तव क्या तुम पुत्रवधू को नहीं देखोगी? त्रिशला - नहीं नहीं.. कुमार को विवाह हेतु तैयार करना सिद्धार्थ हैं। लेकिन.. - होगा । कव करोगी?
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy