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________________ 78 अपश्चिम तीर्थंकर महावीर अवस्था में सोई हुई थी । उसने उस प्रचला निद्रा की अवस्था में हस्ती यावत अग्नि रूप चतुर्दश स्वप्न देखे ।" देखकर वह ऋषभदत्त के पास गयी। सारे स्वप्न बतलाये तब ऋषभदत्त ने कहा- समय आने पर तुम श्रेष्ठ, सुकुमार, सुन्दर, सुरूप बालक का प्रसव करोगी जो भविष्य में वेद-वेदांग का ज्ञाता और शास्त्रों का पारगामी विद्वान होगा। देवानन्दा स्वप्नफल श्रवण कर हर्षित होती हुई गर्भ का संरक्षण करने लगी। न एक दिन प्रथम देवलोक के इन्द्र- शक्रेन्द्र अपने विपुल अविधज्ञान से जम्बू द्वीप को देख रहे थे। उसी समय उन्हें ज्ञात होता है कि भगवान् महावीर की आत्मा देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न हुई है। हर्षातिरेक से रोमांचित होकर सिंहासन से उठकर णमोत्थुणं द्वारा भगवान् की स्तुति करते हैं। पुनः सिंहासन पर बैठकर चिन्तन करते हैं कि तीर्थंकर इस प्रकार न कभी ब्राह्मण कुल में पैदा हुए, न होते हैं, होंगे। भगवान् महावीर की आत्मा ने मरीचि के भव में जातिमद किया था। उसी के परिणामस्वरूप वे देवानन्दा की कुक्षि में पैदा हुए हैं । पर यह मेरा जीताचार है कि भगवान् को इस कुल से निकालकर किसी क्षत्रियाणी के गर्भ में स्थापित करूं ।" अभी किस क्षत्रियाणी के गर्भ में रखूं.......... ऐसा विचार कर देखते हैं कि राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला भी गर्भवती है, अतः उसका गर्भ देवानन्दा की कुक्षि में और देवानन्दा का गर्भ क्षत्रियाणी त्रिशला की कुक्षि में संहरण करवाना चाहिए। ऐसा अवधिज्ञान से चिन्तन कर शक्रेन्द्र ने अपनी पदाति सेना के अधिपति हरिणगमैषी देव को बुलाया, और उन्हें संहरण करने हेतु आदेश दिया कि देवानन्दा का गर्भ त्रिशला की कुक्षि में रख दो । हरिणगमैषी देव आदेश पाकर देवानन्दा ब्राह्मणी के वहां जाता है। सबको अवस्वापिनी निद्रा में सुलाता है । भगवान् महावीर के गर्भ को निकालता है और अशुभ पुद्गल हटाकर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेप कर त्रिशला क्षत्रियाणी के पास आता है। सभी को अवस्वापिनी निद्रा में सुलाता है फिर त्रिशला के गर्भ को निकालकर भगवान् महावीर के गर्भ को त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में रखता है और त्रिशला के गर्भ को देवानन्दा की कुक्षि में रखता है। इस प्रकार भगवान् महावीर की आत्मा 82 रात्रिपर्यन्त देवानन्दा की कुक्षि में रही, 83 वीं रात्रि में -
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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