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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 201 चढ़ाकर गले में फांसी का फंदा डाल दिया। जैसे ही तख्ते को नीचे से हटाया त्यों ही फन्दा टूट गया । पुनः फंदा डाला, टूट गया। इस प्रकार सात बार फांसी का फन्दा डाला और सातों बार वह टूट गया। तब सभी आश्चर्यचकित हो गये। प्रभु को महापुरुष समझकर अधिकारियों ने मुक्त कर दिया लेकिन वास्तविक अपराधी संगम नहीं मिला। प्रभु वहां से विहार करके सिद्धार्थपुर पधारे। वहां भी उसने प्रभु को चोर बतलाकर लोगों द्वारा पकड़वाया। जैसे ही अधिकारी लोग प्रभु को पकड़कर ले जा रहे थे तो कौशिक नामक घोड़े के व्यापारी ने प्रभु को देखा । वह प्रभु को पहिचानता था। उसने अधिकारियों को प्रभु का परिचय देकर बन्धनमुक्त करवाया।20 अब भी वह क्रूर मति वाला संगम भगवान को निरन्तर उपसर्ग उपजाने लगा। प्रभु जिस ग्राम, नगर अथवा वनादि में जाते, वह कुमति प्रभु के साथ जाता और अनेक प्रकार के उपसर्ग करता। इस प्रकार प्रभु को कष्ट पहुंचाते हुए अभी तक उसका मन नहीं भरा। भगवान सिद्धार्थपुर से विहार करके गोकुल में पधारे। उस समय गोकुल में उत्सव चल रहा था। अतः सब घरों में खीर बनी हुई थी। भगवान ने छह महीने व्यतीत हो गये आहारादि ग्रहण नहीं किया। अतः प्रभु पारणा करने के लिए गोकुल में पधारे। परन्तु जहां-जहां भिक्षा हेतु पधारे संगम ने वहां-वहां आहार दोषयुक्त कर दिया। प्रभु ने उपयोग लगाया और ज्ञान से जाना कि वह संगम देव अभी यहां से गया नहीं है तब प्रभु भिक्षा के लिए भ्रमण करना परित्याग कर गांव से बाहर पधारे और बिना पारणा किये गोकुल के बाहर प्रतिमा धारण कर कायोत्सर्ग में स्थित हो गये। कायोत्सर्ग में स्थित प्रभु को देखकर संगम देव ने विचार किया कि मुझे इतना दीर्घ काल हो गया है, मैं निरन्तर इन मुनि को कष्ट पहुंचा रहा हूं पर ये जरा भी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। जैसे पर्वत का भेदन करने में हस्ती असमर्थ होता है वैसे ही इनको विचलित करने में मेरा सारा प्रयत्न असफल रहा। ओह! मैं अपनी दुर्बुद्धि से ठगा गया। स्वर्ग-सुख का त्याग कर यहां इतने समय तक रहा और जैसा कहा वैसा कर भी नहीं पाया। अब यहां और अधिक रहने से लाभ नहीं
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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