SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 200 पीड़ित करता रहा। तब शक्रेन्द्र प्रभु-सेवा में उपस्थित हुआ और भगवान् की सुख-शांति की पृच्छा की। तदनन्तर भगवान् तोसलिग्राम पधारे और गांव के बाहर ही उद्यान में प्रतिमा धारण कर ध्यानस्थ बने। तब उस अभवी संगम देव ने चिन्तन किया कि यदि यह ग्राम में प्रवेश नहीं करता है तो मैं यहां स्थित ही इसको उपसर्ग देता हूं। ऐसा सोचकर छोटे साधु का रूप बनाकर गांव में गया और घरों में सेंध लगाने लगा। तब लोगों ने उसे सेंध लगाते हुए पकड़ लिया। इस पर वह बोला मुझे क्यों पकड़ते हो? मैं तो कुछ भी नहीं जानता। मुझे तो आचार्य भगवन् ने भेजा है। तब लोगों ने पूछा- कहां है आचार्य भगवन्? संगम ने कहा- बाहर उद्यान में प्रतिमा धारण कर खड़े हैं। संगम की बात श्रवण कर लोग बाहर उद्यान में जाते हैं। प्रभु को पीटते हैं। और मारेंगे ऐसा सोचकर रस्सियां बांधकर ग्राम में लाते हैं। वहां पर महाभूतिल नामक ऐन्द्रजालिक था। उसने प्रभु को पहले कुंड ग्राम में देखा था। वह प्रभु को बन्धनमुक्त करवाता है और लोगों को बतलाता है कि यह सिद्धार्थ राजा का पुत्र है। लोग प्रभु से क्षमायाचना करते हैं और उस क्षुद्र साधक को ढूंढने का प्रयास करते हैं जिसने प्रभु को यह उपसर्ग पहुंचाया लेकिन बहुत ढूंढने पर भी जब वह साधु नहीं मिलता, तब जान लेते हैं कि यह देवकृत उपसर्ग है। वहां से विहार करके प्रभु मोसलिग्राम पधारे। तब संगम ने वहां पर भी भगवान् पर तस्करी का आरोप लगाया। तब राजकीय कर्मचारी प्रभु को पकड़कर राज्य-परिषद में ले गये। वहां राजा सिद्धार्थ का अनन्य मित्र सुमागध राष्ट्रीय (प्रान्त का अधिपति) बैठा था। उसने प्रभु को पहचान लिया और भगवान् को बन्धनमुक्त कराया। वहां से पुनः प्रभु तोसलिग्राम पधारे व उद्यान में पधार कर ध्यानस्थ हो गये। संगम ने प्रभु के सामने शस्त्रास्त्रों का ढेर लगा दिया और खुद सेंध लगाने लगा। जब लोगों ने पकड़ा तब कहा- मेरा क्या दोष है, मैंने सारा कार्य गुरुदेव की आज्ञा से किया है। तब लोग भगवान् को पकड़ने आये और तोसलि क्षत्रिय ने प्रभु को छद्मवेशी श्रमण समझकर फांसी की सजा दी। प्रभु को फांसी के तख्ते पर
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy