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________________ 202 अपश्चिम तीर्थकर महावीर है । इस प्रकार चिन्तन कर म्लान मुख वाला वह संगम हाथ जोड़कर प्रभु से निवेदन करने लगा - हे स्वामिन्! शक्रेन्द्र ने सुधर्मा सभा में आपकी प्रशंसा की, आप वैसे ही हैं। लेकिन मैंने उनके वचनों पर श्रद्धा नहीं की और उसी अश्रद्धा के वशीभूत हो यहां आया, आपको बहुत उपसर्ग उत्पन्न किये, आपको विचलित करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन आप तो सत्यप्रतिज्ञ ठहरे। आप इतने भीषण उपसर्गों में किंचित् मात्र भी विचलित नहीं हुए । मैंने आपको इतना कष्ट पहुंचा कर बहुत अपकृत्य किया है। आप तो करुणा - रत्नाकर हैं । आप मेरा अपराध क्षमा कीजिए। अब मैं आपको कष्ट पहुंचाने का विराम लेकर, देवलोक में जा रहा हूं। अब आप सुख-शांतिपूर्वक ग्राम, नगर, पुर, पाटन में विचरण करें। आपका पारणा भी अभी सम्पन्न नहीं हुआ । अब गोकुल में पधार कर निर्दोष भिक्षा ग्रहण करें । इतने दिनों दूषित होने के कारण आहार आपने ग्रहण नहीं किया, वह मेरे द्वारा ही दूषित किया गया था । तब भगवान बोले- संगम मेरी चिन्ता मत कर। हम तो स्वेच्छा से तप और विहार करने वाले हैं। इस प्रकार कहकर और वीर वाणी श्रवण कर संगम भारीकर्मा बनकर स्वस्थान लौट गया" | - इधर सौधर्म देवलोक की स्थिति बडी विचित्र बन रही थी । सौधर्म देवलोक आनन्द और उत्साह से रहित था । सारे देव उद्वेगप्राप्त समययापन कर रहे थे। स्वयं देवराज शक्रेन्द्र की स्थिति भी बड़ी विचारणीय बन रही थी । जिस दिन से संगम प्रभु को उपसर्ग देने गया, शक्रेन्द्र के मन में भारी खेद होने लगा - ओह ! यदि मैं भगवान की प्रशंसा नहीं करता तो संगम को न क्रोध आता और न वह प्रभु को इतने भीषण कष्ट पहुंचाने जाता । मैं वहां कष्टों से बचाने भी नहीं जा सकता क्योंकि प्रभु दूसरों की सहायता ग्रहण नहीं करते । अहा! हा! मेरे कारण आज भगवान को कितने कष्ट सहन करने पड़ रहे हैं। मैं इन समस्त उपसर्गों का निमित्त हूं। मैंने कैसा अधम कार्य किया है। प्रभु को कितनी पीड़ा सहन करनी पड़ रही है। यही सोचकर शक्रेन्द्र उदास रहने लगे। उन्होंने सुन्दर परिधान पहनने का त्याग कर दिया । विलेपन आदि भी अब उन्हें अच्छे नहीं लगते। नृत्यादि भी उनके सामने अब नहीं होते थे । मानो सारा
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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