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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 160 भद्रा ने बड़ी भक्ति से खीर बहराई जिसका उसने शुद्ध शाकाहार जानकर भोजन किया और प्रभु से आकर वार्ता कही। तब सिद्धार्थ ने कहा कि तूं नरमांस की खीर खाकर आया है। तब गोशालक ने अंगुली डालकर वमन किया उसमें बालक के नखादि छोटे-छोटे अवयव निकले। तब क्रोधित होकर गोशालक वहां से निकला | जहां स्त्री का घर था वहां आया, लेकिन द्वार अन्य दिशा में होने से वह घर नहीं मिला। तब उसने श्राप दिया कि यदि मेरे गुरु का तप-तेज हो तो यह सम्पूर्ण प्रदेश जल जाये। तब भगवान की सन्निधि में रहने वाले व्यन्तर देवों ने विचार किया कि प्रभु का महात्म्य अन्यथा नहीं होता, इसलिए उन्होंने सारे प्रदेश को जला दिया। भगवान रात्रि में वहीं रहे। । दूसरे दिन प्रभु वहां से विहार कर हरिद्रु नामक गांव में पधारे। वहां गांव के बाहर हरिद्रु वृक्ष के नीचे प्रतिमा धारण करके कायोत्सर्ग करने लगे। वह वृक्ष छायादार और विस्तृत था। ऐसा लग रहा था मानो उस वृक्ष ने पत्तों का छत्र धारण कर रखा है। ऐसे घने वृक्ष को देखकर एक सार्थ (व्यापारियों का समूह) जाता वहां हुआ रुका। रात्रि में भयंकर शीत का प्रकोप था। उस सार्थवालों ने अग्नि प्रज्वलित की और वहां तापने लगे। अग्नि के सहारे रात्रि व्यतीत कर सार्थ वहां से चल दिया लेकिन अग्नि शमित करना विस्मृत कर गये। तब हवा से प्रेरित अग्नि निरन्तर फैलने लगी। उस समय गोशालक प्रभु के पास आया और कहा- "यह अग्नि नजदीक आ रही है, यहां से भाग जाओ।" ऐसा कहकर वह तो वहां से भाग गया लेकिन परीषहजयी प्रभु वीर अग्नि से कहां भयभीत होने वाले थे। वे अडोल वनकर वहीं स्थिर रहे । अग्नि प्रभु के चरणों के पास आई। उससे प्रभु के चरण श्याम हो गये लेकिन वह उन चरणों को प्रज्वलित नहीं कर पाई क्योंकि अनपवर्तनीय आयुष्य उपक्रम करने पर भी कम नहीं होती । अतएव तीर्थपति की ऊर्जा से अग्नि शमित हुई, तव प्रभु गोशालक सहित विहार करके लांगल ग्राम पधारे। लांगल ग्राम के बाहर वासुदेव का मन्दिर था। वहां प्रतिमा धारण कर प्रभु कायोत्सर्ग में स्थित हो गये। उस मन्दिर के पास ग्राम के बालक क्रीडा कर रहे थे। गोशालक ने उन वालकों को भयभीत
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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