SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 161 करने के लिए प्रेत की तरह विकृत रूप बनाया और उन्हें भयभीत करने लगा। उसके विकृत रूप के भय से किसी का वस्त्र गिर गया, किसी की नाक टूट गयी, कोई चलता-चलता गिर पड़ा। इस प्रकार भयभीत होकर बालक ग्राम की तरफ भाग गये। बालकों ने अपने-अपने घरों पर जाकर सारा वृत्तान्त कहा। क्रोधाभिभूत हो उन बालकों के पिता आदि, जहां गोशालक था, वहां आये। उसका विकृत रूप देखा और उसको खूब पीटा। तदनन्तर वृद्ध पुरुष आये और कहा कि इसको मत मारो। यह देवार्य का सेवक जान पड़ता है। तब वृद्धजनों के कहने से उन व्यक्तियों ने गोशालक को छोड़ दिया और चले गये। उनके जाने के पश्चात् गोशालक ने प्रभु से कहा- भगवन्! आपके रहते हुए लोग मेरी पिटाई करते हैं और आप देखते रहते हैं। यह उपेक्षा ठीक नहीं है। तब सिद्धार्थ बोले- तूं अपने स्वभाव से ही पीटा जाता है। उसमें कौन बचा सकता है? तत्पश्चात् कायोत्सर्ग पालकर वहां से विहार कर प्रभु आवर्त नामक ग्राम में पधारे। उस आवर्त ग्राम में बलदेव का मन्दिर था। वहां प्रतिमा धारण कर प्रभु कायोत्सर्ग करने लगे। यहां भी कौतुकवश गोशालक बालकों को भयभीत करने लगा। तब उन बालकों के पितादि वहां आये और मदोन्मत्त सांड की तरह गोशालक की जमकर पिटाई की। पिटाई करके वे लोग पुनः लौट गये तब गोशालक फिर भयभीत करने लगा। तब बालकों ने पुनः आकर अपने पितादि से सारा वृत्तान्त कहा। तब उन लोगों ने सोचा कि इसकी पिटाई कर दी तब भी यह नहीं मानता है और न ही इसका मालिक कुछ कहता है इसलिए मर्यादानुसार इसके मालिक की पिटाई करनी चाहिए। ऐसी दुर्बुद्धि से वे प्रभु की पिटाई करने के लिए डण्डे लेकर वहां आये। उस समय वहां रहने वाला प्रभुभक्त कोई व्यन्तर देव बलदेव की प्रतिमा में घुसा और हल लेकर उन ग्रामवासियों को मारने गया। तब आशंका और विस्मय से सभी लोगों ने प्रभु के चरणों में प्रणाम कर क्षमायाचना की और वहां से चले गये। वहां से विहार कर प्रभु चोराक सन्निवेश नामक ग्राम में आये और एकान्त स्थान पर जाकर प्रतिमाधारण कर रहने लगे। तब गोशालक ने प्रभु से पूछा- आप गोचरी जाओगे या नहीं? भगवान के
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy