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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर 159 में लीन बन गये। अवशेष रात्रि शांतिपूर्ण व्यतीत हुई । ऊषा अपनी लालिमा को चहुंदिश में बिखेरती हुई आकाश में सिन्दूर भर रही थी । मरीचिमाली अपनी मरीचियों को बिखेरते हुए उदीयमान होने वाला था । पक्षियों के कलरव से दिशाएं गान कर रही थीं । पुष्पों पर अलियों की गुंजार अभिनव सृजन कर रही थी । लोग अलसाये नेत्रों से जागृत बनकर अपने कार्य के प्रति सजग बन रहे थे । मन्द मन्द बयार वृक्षों को आन्दोलित कर रही थी। सूर्य उदयाचल पर आरूढ़ हुआ । पश्चिम में तृतीय लालिमा का विस्मयकारी दृश्य उपस्थित कर भास्कर उदित हुआ । प्रभु महावीर ने उदीयमान मरीचियों के साथ कायोत्सर्ग पाला । वीर प्रभु के चरण गतिमान हुए । विहार कर भगवान श्रीवस्ती नगरी पधारे। वहां नगर के बाहर कायोत्सर्ग करके स्थित रहे । आहार का समय जानकर गोशालक ने प्रभु से कहा- भगवन्! भिक्षा लेने चलो क्योंकि मनुष्य जन्म में भोजन सार रूप है। तब सिद्धार्थ ने कहा कि भद्र! हमारे उपवास है। गोशालक ने पूछा- हमें कैसा भोजन मिलेगा ? सिद्धार्थ ने कहा- तुमको नरमांस की भिक्षा मिलेगी' । गोशालक ने कहा- जहां मांस की गन्ध होगी वहां जाऊँगा ही नहीं। ऐसा निश्चय करके वह श्रीवस्ती नगरी में भिक्षा लेने गया । उस नगर में पितृ नामक एक सद्गृहस्थ था। उसके भद्रा नामक भार्या थी । उसे मृतक पुत्र ही पैदा होते थे। एक बार उसने शिवदत्त नामक नैमित्तिक को आदरसहित पूछा कि मेरी सन्तान कैसे जीवित रहेगी। नैमित्तिक ने कहा कि जब तेरे मरी हुई सन्तान पैदा हो तब उसके रुधिरयुक्त मांस की दूध, घी, मद्य की खीर बनाओ और लयुक्त पैर वाले भिक्षुक को दे दो। उससे तुम्हारे जरूर सन्तान पैदा हो जायेगी । उस भिक्षुक के भोजन करने के बाद तत्काल मैं तुम्हारे घर का द्वार दूसरी दिशा में कर दूंगा जिससे उस भिक्षुक को बाद में पता भी चल जायेगा तो भी वह क्रोध से तुम्हारा घर जला नहीं पायेगा । उस भद्रा ने नैमित्तिक की बात को स्वीकार कर लिया और मृत बालक हुआ, उसके रुधिर-मांस की खीर बनाई । साधु का इन्तजार करने लगी। इधर गोशालक घूमता हुआ संयोगवश वहां आया। उस
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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