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________________ साधनाकाल का पंचम वर्ष अपश्चिम तीर्थंकर महावीर ― - 158 पंचदश अध्याय पृष्ठचम्पा का चातुर्मास सम्पन्न कर प्रभु महावीर कृतमंगला नामक नगरी में पधारे। उस नगरी में दुरिद्रथेर नाम से पहिचाने जाने वाले आरम्भ परिग्रहधारी, स्त्री-संतान वाले कितने ही पाखंडी रहते थे । उनके निवास-स्थान (पाड़ा) के बीच में एक बड़ा देवालय था । उसमें कुलक्रम से प्राप्त देवताओं की प्रतिमाएं थीं। उसके एक कोने में स्तम्भ की तरह निष्कंप होकर प्रभु वीर कायोत्सर्ग कर रहे थे' । माघ महीने की कड़कड़ाती सर्दी और अचेल प्रभु महावीर ध्यानस्थ खड़े हैं। भयंकर शीत लहरियां प्रभु के शरीर को संस्पर्शित कर रही हैं लेकिन भगवान अडोल बनकर परीषहजयी बन गये हैं । इधर उसी देवालय में उसी दिन रात्रि महोत्सव था । वे पाखंडी लोग अपने-अपने परिवार सहित वहां आये और नृत्य गीत करते हुए जागरण करने लगे । उनके नृत्यादि को देखकर गोशालक हंसने लगा और वोला कि ये पाखंडी कौन हैं जिनकी स्त्रियां मद्यपान करके निर्लज्ज होकर नाच रही हैं। तब उन पुरुषों को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने जैसे घर में से कुत्ते को निकालते हैं वैसे गोशालक को गले से पकड़कर बाहर निकाल दिया। ठंड से ठिठुरता, दांतों को बिगाड़ता हुआ बाहर खड़ा रहा। फिर उस पर लोगों को दया आ गयी तो उसे अन्दर बुला लिया । थोडी देर में ठंड दूर हो गयी । पुनः वह पहले जैसा ही बोला । तब लोगों को गुस्सा आया । पुनः बाहर निकाल दिया। इस प्रकार क्रमशः तीन बार बाहर निकाला और तीन बार अन्दर बुलाया । तव चौथी बार अन्दर आने पर गोशालक बोला कि अरे अल्प बुद्धि वाले पाखंडियों, सूर्य राच कान पर क्यों क्रोध आता है? तुम्हें अपने दुष्चरित्र पर क्रोध युवक लोग उसे मारने के लिए तैयार हुए लेकिन जना सकते हुए कहा कि तुम इसे मत मारो क्योंकि यह इन व्यापारी या उगमक हो। तुम इसकी बात पर ध्यान ही असा बोल बोल दो। तुम अपने वादों की बा। तय व युवक नृत्य-गायनी
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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