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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 155 ध्यानस्थ मुनि को देखकर उन्मत्त बना हुआ सोचता है यह कोई चोर है। अतः मुनि के पास जाकर उनका गला रेत दिया। उस भीषण वेदना को मुनि समभावपूर्वक सहन करने लगे और उन्हें तत्काल अवधिज्ञान पैदा हो गया | वे मृत्यु को प्राप्त कर देवलोक गये। उस स्थान के समीपवर्ती व्यन्तर देवों ने उनके ऊपर पुष्पवृष्टि की। इधर आकाश में देवों की श्रेणी का दिव्य प्रकाश देखकर गोशालक भगवान के पास आया और पूछा भगवन्! आकाश में अत्यन्त प्रकाश हो रहा है तो मुझे ऐसा अनुमान लगता है कि आपके शत्रुओं का उपाश्रय जलकर राख हो गया है। सिद्धार्थ ने कहा- अरे मूर्ख, यह ऐसा नहीं है। जिनकल्प का अभ्यास करने वाले मुनि मुनिचन्द्र अभी स्वयं शुक्ल ध्यान के शुभ प्रभाव से स्वर्ग में गये हैं। उनकी महिमा करने के लिए दिव्य उद्योतवाले देवता आये हैं। उनका यह दिव्य प्रकाश नभमण्डल को आलोकमय बना रहा है। उसी से तुझ अल्पज्ञ को अग्नि की भ्रांति हुई है। ऐसा श्रवण कर गोशालक के मन में कौतुक उत्पन्न हुआ। वह कुतूहलवश पुनः जहां मुनिचन्द्र मुनि का औदारिक पिण्ड (मृतक शरीर) था, वहां आया तब तक देवगण मुनि-महिमा का गुणगान कर स्वर्ग की ओर रवाना हो चुके थे। देवदर्शन हर किसी व्यक्ति को नहीं होते। प्रबल पुण्यवानी का उदय होने पर देवदर्शन मिलते हैं। इसी कारण गोशालक को देवदर्शन नहीं हुए। लेकिन वहां सुगन्धित जल एवं पुष्पवृष्टि को देखकर वह सन्तुष्टित हुआ। तब कौतूहली प्रज्ञावाला गोशालक उपाश्रय में पार्श्वनाथ प्रभु के साधुओं के पास गया और कहने लगा- अरे! तुमने मात्र सिर मुंडित कराया है। तुम बड़े नादान शिष्य हो। दिन में तो इच्छानुसार भोजन करते हो और रात्रि में अजगर की तरह पड़े रहते हो। तुम इतना भी नहीं जानते कि तुम्हारे आचार्य की मृत्यु हो गयी। अरे! उत्तम कुल में जन्म लेने वाले तुम्हारे मन में गुरु के प्रति कोई स्थान नहीं? ये वाक्य श्रवणकर वे साधु उठे, उन्होंने सोचा, यह पिशाच की तरह कौन बोल रहा है? वे उपाश्रय के बाहर आये, अपने आचार्य को मृत पाकर बड़े खेदित हुए और आत्मनिंदा करने लगे कि ओह! आज हमारी इतनी सावधानी नहीं रही। हमने गुरुदेव की सार-सन्हाल नहीं ली और
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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