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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 156 किसी ने हमारे गुरु का प्राणहरण कर लिया । धिक्कार है हमें, हमने हमारा कर्तव्य नहीं निभाया। इस प्रकार वे थके मन से अपनी व्यथा कहने लगे। इधर गोशालक भी उनको अंटशंट बोलता हुआ उनका तिरस्कार करता हुआ प्रभु के समीप आ पहुंचा। तत्पश्चात् प्रभु वहां से विहार कर चोराक सन्निवेश पधारे। वहां परचक्र के भय का जोरदार बोलबाला था ! I आरक्षक लोग बड़े सजग रहते थे । वे इधर-उधर चोर को ढूंढ रहे थे कि हमारे राज्य में कहीं कोई चोर उचक्का न घुस जाये । आरक्षक घूमते-घामते जहां प्रभु कायोत्सर्ग करके खड़े थे, वहां आये और पूछा कौन? प्रभु ने तो मौन धारण कर रखा था इसलिए कुछ भी नहीं बोले लेकिन गोशालक भी चुप रहा । तब आरक्षकों ने उन्हें चोर समझकर पकड़ लिया और उन्हें बांधकर कुएं में घड़े की तरह लटकाया, फिर निकाला, पुनः लटकाया । उस समय सोमा और जयंतिका साध्वियां, जो कि भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्याएं थीं, निमित्त शास्त्र की ज्ञाता थीं, उनको ग्रामवासियों ने बताया कि अमुक लक्षण वाले दो पुरुषों को आरक्षकों ने पकड़ा है और घड़े की तरह कुएं में लटका रहे हैं, बाहर निकाल रहे हैं । ― उन साध्वियों ने वृत्तान्त सुना । सुनकर विचार किया कि ये तो भगवान् महावीर होने चाहिएं। ऐसा चिन्तन करते ही तुरन्त वहां से रवाना हुई और जहां प्रभु को कुएं में लटका रखा था, वहां आईं। आकर प्रभु को देखा और आरक्षकों से कहा अरे भाइयों! ये क्या कर रहे हो? ये सिद्धार्थ राजा के पुत्र भगवान महावीर हैं। ये चरम तीर्थंकर हैं । तुम यह क्या अनर्थ कर रहे हो? तब आरक्षक लोगों ने यह सुनते ही तुरन्त बन्धन खोले । प्रभु को मुक्त किया और बारम्बार क्षमायाचना करने लगे' । करुणासिन्धु भगवान क्षमा के साक्षात् अवतार थे। वे तो मुस्कराते हुए वहां से विहार कर गये । कई दिनों तक विहार करने के पश्चात् भगवान चातुर्मासार्थ पृष्ठचम्पा पधार गये। पृष्ठचम्पा में प्रभु ने चार महीने आहार का परित्याग कर दिया। विविध प्रकार की प्रतिमा धारण करते हुए कर्मों के वृन्द के वृन्द नष्ट करते हुए प्रभु चार महीने निराहार चिन्तन में लीन रहे ।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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