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________________ 154 अपश्चिम तीर्थंकर महावीर यह ढोंग रचा है। वस्तुतः निर्ग्रन्थ तो वस्त्ररहित और शरीर की आसक्तिरहित मेरे धर्माचार्य हैं । तब भगवान को नहीं जानने से, गोशालक के इन वचनों को सुनकर वे पार्श्वनाथ भगवान के शिष्य बोले कि "जैसा तूं है वैसे ही तेरे धर्माचार्य भी स्वयं ग्रहीतलिंग होंगे ।" तब गोशालक का पारा सातवें आसमान पर चढ गया और क्रोध में आगबबूला होकर कहने लगा- मेरे धर्माचार्य के प्रभाव से तुम्हारा उपाश्रय भस्मीभूत हो जाये लेकिन उपाश्रय जला नहीं । वह बार-बार यही उच्चारण करने लगा लेकिन जब बहुत बार कहने पर भी उपाश्रय नहीं जला तब उन साधुओं ने कहा कि तुम चाहे कितना ही श्राप दे दो, तुम्हारे श्राप से हमारा कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है । तब गोशालक खिन्न होकर भगवान के समीप आया और निवेदन किया- प्रभो! आज आपकी निन्दा करने वाले तपस्वी साधुओं को मैंने देखा । आपकी निन्दा करने पर मैंने उनको श्राप भी दिया कि यदि मेरे धर्माचार्य गुरु के तप - तेज का प्रभाव हो तो उपाश्रय जलकर राख हो जाये, लेकिन उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और न ही उपाश्रय जलकर राख हुआ । तब उसका क्या कारण है? तब सिद्धार्थ प्रभु के शरीर में प्रविष्ट होकर बोला कि वे प्रभु पार्श्वनाथ के शिष्य थे तब उपाश्रय जलकर राख कैसे होता ? तब गोशालक मौन हो गया । संध्या अपनी लालिमा बिखेरते हुए अपनी आभा से भूमण्डल को अलंकृत कर रही थी । पक्षीगण अपने- अपने घोंसलों की ओर लौट रहे थे। सूर्य अस्ताचल की ओर जाता हुआ अपनी किरणों को समेट रहा था। सभी अपने-अपने गन्तव्यों की ओर प्रस्थान कर रहे थे। उस समय प्रभु अपने कायोत्सर्ग में लीन थे। धीरे-धीरे यामिनी ने पदाधान किया । चहुं ओर कोलाहल शांत हो गया। उस बाह्य शांति में प्रभु आत्मशांति में तल्लीन थे । आनन्द की तरंगों में तरंगायत स्वयं से स्वयं को पाने के लिए कटिबद्ध थे। ऐसे सौम्य वातावरण में जिनकल्पी कठोर साधना करने वाले मुनिचन्द्र मुनि पार्वापत्य साधुओं के उपाश्रय के बाहर दूसरी भावना भाते हुए प्रतिमा धारण करके स्थित थे । उस समय कुपनय कुम्हार मदिरापान से उन्मत्त वनकर अपनी कुम्हारशाला के बाहर आया । -
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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