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________________ ७७ समझने की हमे किसी भी एक मनुष्य को ठीक तरह से कोशिश करने पर मिल जाएगा। क्या हम इस मनुष्य की किसी भी एक, दो-चार बातो पर विचार करने के बाद उसके बारे मे बिलकुल स्पष्ट और निश्चित अभिप्राय दे सकेगे ? नही दे सकेगे । इससे यह स्पष्ट है कि किसी भी एक ओर से (एक ही पहलू से ) किसी भी चीज को देखकर हम उसके बारे मे अपनी राय कदापि न दे सकेगे । अनेकातवाद हमे ऐसी सुनहरी और मूल्य शिक्षा देता है कि किसी भी विषय का निर्णय करने से पहले, उसके हर पहलू से जांच करो । यह कितनी सुन्दर बात है । उच्च भूमिका से सम्बन्धित कुछ बाते हम यहा पर करेगे । अनेक दृष्टि से जैन दार्शनिको का कहना है कि "जो वस्तु तत्त्वस्वरूप है, वह अतत्त्व स्वरूप भी है, जो वस्तु सत् है वही सत् भी है, जो एक है वह अनेक भी है। जो नित्य है वह नित्य भी है। इस तरह हर एक वस्तु परस्पर विरोधी गुणधर्मो से भरी हुई है ।" यदि यह बात प्रारभ मे कह दी होती तो उसे पढकर हम अपना मुह बिचकाते, और सभवत यहाँ तक पहुँच भी न पाते लेकिन इससे पहले जो थोडा-सा विवेचन हुआ है वह हमारी समझ मे यथाशक्ति आ ही गया है । इस कारण अव हमे ये सब बाते वेकार सी प्रतीत न होगी । फिर भी स्वाभाविक तौर पर एक प्रश्न उपस्थित हुए बिना न रहेगा - 'जो सत् है उसे ही 'असत्' कैसे माना जा
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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