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________________ ४१४ घर किये रहता है उसे जब तक हम पूर्णतया छोड़ न दें तब तक हममे पूर्ण और शुद्ध नमस्कारभाव प्रकट नहीं होता। यह भाव कव प्रकट होता है ? यह भाव तभी प्रकट होता है जब हमारी समझ जिनके विषय मे हम नमस्कार-भाव का चितन करते हो उनके साथ अर्थात् उनके सद्गुरगो तथा प्रभावो के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेती है। तो इस मत्र मे हम नमस्कार किसे करते है ? इसे 'पचपरमेष्ठिनमस्कार' कहते है । अरिहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुगण-पच परमेष्ठि को-महान परमात्मतत्त्व को उद्देश कर हम नमस्कार करते है। आत्मा के शत्रुनो का अर्थात् इस ससार मे रममारण तमाम आत्मानो को सद्गति और शिव लक्ष्मी प्राप्त करने में वाधा डालने वाले तमाम शत्रुओ का जिन्होने हनन किया है, ऐसे अरिहत परमात्मा को, सभी कर्मो का क्षय करके सिद्धत्व प्राप्त किये हुए सिद्ध भगवन्तो को, हमे इस मार्ग का यथार्थ ज्ञान देने वाले कुलपति-आचार्यों को, इस ज्ञान की प्राप्ति मे हमारी सहायता करने वाले प्राध्यापक-उपाध्यायो को, और जिनका चित्त इस मार्ग पर क्रियाशील बना है, ऐसे सभी साधुजनो को हम नमस्कार करते है। पच परमेष्ठी के विशिष्ट गुणो को व्यक्त करने के लिए स्थान, समय और शक्ति के अभाव के कारण, यह लेखक केवल इतना नम्रतापूर्वक सूचित करता है कि इस विषय मे जैन प्राचार्य महाराजो का सम्पर्क साधकर सत्सग प्राप्त करने से जितना प्रकाश मिल सकता है उतना अनेक सूर्यसमूह एकत्रित होकर भी नहीं दे सकते।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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