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________________ ४१५ परन्तु एक महत्त्व की बात याद रखे। आज इस जगत मे यह मत्राधिराज 'नमस्कार महामत्र' ही एक मात्र ऐसा मत्र है जिसके रटन से मनुष्य मात्र की तन, मन और धन की सारी नाकाक्षायो का शुद्धिकरण, उत्क्रातिकरण, और अ:करण होता है । अन्य किसी भी प्रकार के लम्बे चौडे विचार किये विना केवल इन महामन्त्र के रटनमात्र को ही ध्येय बना कर यदि इसका रटन करना शुरू कर दिया जाय तो उससे रटन करने वाले के समस्त जीवन का कार्य-भार यह मत्राधिराज अपने ऊपर ले लेता है। नमस्कार महामन की गरण मे जाने वालो के लिए यह नमस्कार महामन स्वय पिता है, स्वय गुरु है, स्वय देव है, स्वय धर्म है, स्वय उद्धारक है और स्वय तारक है । यह महामत्र स्वय अपने साधक की सभी विवेकयुक्त भौतिक कामनायो को पूर्ण करता हुआ, सभी प्रकार के सकटो को नष्ट करता हुआ, देह, आत्मा एव परिवार की रक्षा करता हुआ, उसे पूर्ण प्रोर अनन्त सुख की ओर खीच ले जाता है । आपको सुधासरोवर के तट पर लाकर खडा कर दिया गया है। अमृत-रस आँखो के सामने दिखाई देता है। यह आपको प्रेमपूर्वक-आग्रहपूर्वक प्रामत्रण देता है कि आप उसका आस्वाद लेकर घन्य बने । खडे खडे देखते रहने से क्या लाभ है ? इसमे हाथ डालिये, इसमे से कुछ बूदे करकमल में ग्रहण करके अपनी जिहा पर रखिये, फिर जो अनुभव होता है उसका परम आनन्द स्वय भोगिये ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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