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________________ ४१३ इस नमस्कार महामंत्र की शक्तियो और सिद्धियो के विषय मे अनादि काल से अनेक अनुभवसिद्ध महापुरुषो ने इतना सारा लिखा है, इस मंत्र के एक एक अक्षर मे रही हुई शक्तियों का वर्णन इतना विस्तारपूर्वक किया है कि उसे पढने के और समझने के लिये सौ वर्ष का आयुष्य भी कम है । इस मंत्र मे इतना सारा, ऐसा सब क्या है ? क्या जवाव ? इस महासिधु के एक अत्यल्प विदु का जो अनुभव हुआ है उसका वर्णन करने के लिए भी शब्द नही मिलते । मुख्यतः तो यह अनुभव का विषय है । इसका सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऐसे महानुभाव साधु पुरुषो का सत्सग प्राप्त करना आवश्यक है जिन्हे इसका पर्याप्त अनुभव हो । विद्यमान जैन आचार्यों तथा मुनि महाराजो मे से इसके अनुभव वाले किसी विरले महात्मा के पास जाइए, श्रद्धा और जिज्ञासा लेकर जाइए, तो आप को निराश नही होना पडेगा । इस महामत्र मे जो 'नमो' शब्द है, उस एक ही शब्द के धारण तथा अगीकरण के लिए हमारे पास असाधारण योग्यता होनी चाहिए । जव हम शिष्टाचार के लिए 'मै नमस्कार करता हूँ, वन्दन करता हूँ' - ऐसे शब्द कहते है तब यह न मान ले कि हमारे द्वारा नमस्कार या वन्दन हो जाता है । "जब तक ऐसी आत्मप्रतीति न हो कि मै केवल नमस्कार करने के ही योग्य हूँ, तब तक कोई भी नमस्कार फलदायक नही होता । यह आत्मप्रतीति अपने आप मे एक विशिष्ट प्रकार की और उच्च पात्रता है । हमारे भीतर क्षरण क्षरण, जाने-अनजाने, हर समय और हर जगह जो अहंभाव
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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