SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इच्छा के अनुसार सवेदन पैदा करना हमारे हाथ की बात है। 'स्याद्वाद' का सिद्धान्त हमे यह भी समझाता है। ___'स्याद्वाद' सिद्धान्त का अनुसरण करके हम ज्यो ज्यो उसे पचाते जाएँ त्यो त्यो सुख और दुख-दोनो प्रकार के परस्पर विरोधी सवेदनो पर हमारा काबू हो जायगा । समता, समभाव तथा सहिप्णुता अपने आप हमारे भीतर प्रकट होते जायेगे। हम क्षणिक सुख दुख की जकड से धीरे धीरे मुक्त हो कर अनन्त आनन्द के भोक्ता बन सकेगे। इस आनन्द मे भी हमे स्व एवं पर का कल्याण करने की उदात्त भावना ही देखने को मिलेगी । 'स्यावाद' के विना ऐसा परम कल्याणकारी परिस्थिति का सूनन कभी नही हो सकता। स्याद्वाद हमे अन्याय या अनीति को सहन करने या चला लेने की शिक्षा नहीं देता। जहाँ जरूरत हो वहाँ लड़ लेने को भी वह मना नहीं करता। परन्तु ऐसी परिस्थिति मे जिसे हम अन्याय एवं अनीति मानते है वह सचमुच अन्याय या अनीति है या हमे अपने स्वार्थ एव मोह के कारण ऐसा यथार्थ दिखाई देता है इस बात की स्पष्ट प्रतीति हमे स्यावाद कराएगा। फिर जव लड लेने की न्याययुक्त आवश्यकता होगी तब स्यावाद ही हमे लड़ने की न्याय-सगत बुद्धियुक्त एवं समभावपूर्ण पद्धति वताएगा। इस मार्ग पर हमारी सफलता एव विजय निश्चित है। , इस संसार मे सद्गुणो का जो समूह है उम सारे को हम कर्म की विचित्रता तथा उसके कारण आत्मा से चिपकी हुई अशुद्धता के कारण धारण नहीं कर सकते। सद्विचारो का सान्निध्य एव ज्ञान होते हुए भी हम असद् विचार तथा
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy