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________________ ३६२ यदि कैद हुए तो 'नो वरी' ( चिन्ता नही ) यदि घायल हुए तो 'दो बाते होगी। । (यह दो वातो वाला विवरण बहुत लम्बा है, अतः उसे सक्षिप्त कर हम यहाँ अन्तिम भाग प्रस्तुत करते है । ) ___ दो वाते होगी। या तो तुम जिन्दा रहोगे या मर जायोगे । जीवित रहे तो 'नो वरी ।' मर गये तो 'दो वाते' होगी। ___"या तो तुम स्वर्ग मे जानोगे या नरक मे । यदि स्वर्ग मे गये तो 'नो वरी'। __ इस दृष्टान्त के आखिर मे नरक मे जाने का और वहाँ बहुत से मित्रो से मिलने का जो उल्लेख है उसमे वर्तमान जीवन पर वडा भारी व्यग्य है। इसके द्वारा उक्त अग्रेज अधिकारी यह कहना चाहते है कि हम में से अधिकाश लोग जिस प्रकार का जीवन जीते है उससे नरक के अधिकारी है । 'अधिकाश लोग नरक मे जाते है' इस व्यग्य को छोड़ भी दे तो भी 'दो तरह से विचार करने का सुझाव तो सारे चुटकले मे है ही। केवल दो नही, बल्कि जितने हो सके और जितने मिल सके उतने सभी पहलुनो से विचार करने की आदत डालने मे लाभ ही है। 'स्याद्वाद' हमे इस प्रकार से विचार करना सिखाता है। इस प्रकार यदि हम स्याद्वाद पद्धति का विवेकपूर्वक उपयोग करेगे तो हमे ज्ञात होगा कि जीवन मे दीख पड़ने वाली विषमतामो तथा झझटो और उनके विपरीत हमे मिलने वाले सुखो तथा आनन्दो का केन्द्रस्थान हम स्वय ही है । ये सवेदन हमारे भीतर से ही आते है, बाहर से नही । अपनी
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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