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________________ ३५१ उनके पति विल्कुल खुक्क थे । आज उनका अपना वगला है, मोटर कार है, नोकर चाकर है, सोने के जेवर तो सब के पास होते है, उनके पास तो हीरे और मोती के कैसे सुन्दर जेवर है कि देख कर मुँह मे और आँख में भी पानी श्राजाय । इस गुणवन्ती बहन के रोव की तो कोई हद नही है । कुछ ऐसा करो कि मैं उन्हे नीचा दिखा सकूँ ।" यह बात आगे बढाने से पहले विलायत के एक अमीर और एक मजदूर कुटुम्ब की बात मुझे याद ग्रा रही है । वात बहुत ही रसमय एव अर्थपूर्ण है, इसलिए उसे यहाँ प्रस्तुत करने की इच्छा होती है । जब दो सखियों साथ पढती थी । उनमे गाढ मित्रता थी । एक का नाम था 'फनी' और दूसरी का 'ल्युसी' । फ्रेनी ने एक अमीर से शादी की और ल्यूसी ने एक मजदूर से । फ्रेनी के पास हीरे माणिक के जेवरो का ढेर था, कि ल्युसी इमिटेशन, नकली - सस्ते गहने लाकर पहनती । उक्त गुणवन्ती वहन की तरह फेनी का रोब भी बेहद था । वह जहाँ तहाँ अपनी अमीरी की डीग हाँकती थी । अपना वैभव बताकर अपनी सखियो को चकाचौध करने का उसे बडा शौक था । इस हेतु से वह जब तव अपने आलीशान महल मे दावते देती, सखियो को भोजन का निमन्त्रण भेजती, अपने यहाँ सब को एकत्रित करती, गौर सव के बीच अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन किया करती थी । जव उसकी अन्य सखियाँ यह सव देख कर अपनी लघुता अनुभव करती और उसके वैभव को तथा उसकी प्रशसा करती तो फ्रेनी गर्व से फूली न समाती । उसे बडा गढ जीतने का आनन्द होता ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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